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पाकिस्तानी सेना में बगावत? 4,500 जवान और 250 अफसरों ने दिया इस्तीफा

Published on May 14, 2025 by Vivek Kumar

पाकिस्तान के सेना प्रमुख जनरल असीम मुनीर, जिन्हें कभी अनुशासनप्रिय, धार्मिक और रणनीतिक सोच वाला कमांडर माना जाता था, आजकल अपनी ही सेना, राजनैतिक विपक्ष और जनता के बीच व्यापक असंतोष का सामना कर रहे हैं। भारत के साथ बढ़ते तनाव और देश के भीतर अस्थिरता के चलते उनकी लोकप्रियता तेजी से घटती जा रही है।

असीम मुनीर का कार्यकाल

29 नवंबर 2022 को पाकिस्तान के सेनाध्यक्ष बनाए गए असीम मुनीर ने देश की सबसे शक्तिशाली संस्था की बागडोर संभाली। धार्मिक रूप से समर्पित होने के कारण उन्हें "हाफ़िज-ए-क़ुरान" की उपाधि प्राप्त है – जो शीर्ष सैन्य अधिकारियों में दुर्लभ मानी जाती है। लेकिन उनके नेतृत्व में स्थिरता की उम्मीदें धीरे-धीरे अस्थिरता में बदल गई हैं।

भारत के साथ बढ़ते तनाव

22 अप्रैल को जम्मू-कश्मीर के पहलगाम में हुए आतंकी हमले के बाद भारत की तीव्र जवाबी कार्रवाई ने पाकिस्तान को रक्षात्मक मुद्रा में ला दिया। कई विश्लेषकों का मानना है कि यह स्थिति हालिया वर्षों में दोनों परमाणु शक्तियों के बीच युद्ध के सबसे करीब थी।

सोशल मीडिया पर गुस्सा, #MunirOut ट्रेंड में

पाकिस्तान में सोशल मीडिया पर असीम मुनीर के खिलाफ गुस्सा लगातार बढ़ रहा है। #MunirOut जैसे हैशटैग कई दिनों तक ट्रेंड करते रहे। उन पर सिर्फ भारत नीति ही नहीं, बल्कि देश की आंतरिक राजनीति के खराब संचालन का भी आरोप लगा। पूर्व प्रधानमंत्री इमरान खान की गिरफ्तारी को राजनीतिक बदले की भावना माना गया, जिसने उनके बड़े समर्थक वर्ग और धार्मिक दलों को नाराज़ कर दिया।

सेना में दरार?

पाकिस्तान सेना, जिसे आमतौर पर एकजुट माना जाता है, अब अंदरूनी मतभेदों से जूझ रही है। रिपोर्ट्स के अनुसार 4,500 सैनिक और 250 अफसरों ने इस्तीफा दे दिया है। आरोप है कि असीम मुनीर ने अपने वफादारों को प्रमोट किया और असहमत अधिकारियों को दरकिनार किया।

‘मुल्ला मुनीर’ की छवि

सेना में धार्मिक विचारधारा को बढ़ावा देने के चलते उन्हें ‘मुल्ला मुनीर’ तक कहा जाने लगा है। उनकी बार-बार क़ुरान की आयतों के हवाले और ज़िया-उल-हक़ जैसी धार्मिक सैन्य संस्कृति की तुलना कई पूर्व अफसरों को असहज कर रही है।

एक सेवानिवृत्त ब्रिगेडियर ने गुमनाम रूप से कहा –
"वो सिर्फ सेना का राजनीतिकरण नहीं कर रहे, बल्कि उसका धर्मीकरण भी कर रहे हैं। यह पेशेवर सैन्य अनुशासन के लिए खतरनाक है।"

कार्यकाल में विस्तार और सत्ता की पकड़

हालांकि आलोचना बढ़ती जा रही है, लेकिन असीम मुनीर सत्ता में मजबूती से जमे हुए हैं। शाहबाज़ शरीफ सरकार ने चुपचाप संसद में संशोधन कर उनके कार्यकाल को नवंबर 2027 तक बढ़ा दिया। इससे उन्हें राजनीतिक हस्तक्षेप से फिलहाल सुरक्षा मिल गई है। लेकिन कुछ विश्लेषकों का मानना है कि सेना के भीतर लगातार असंतोष भविष्य में बड़ी चुनौती बन सकता है।

विद्रोह या तख्तापलट की अटकलें

विपक्षी दलों ने विद्रोह या तख्तापलट की संभावना तक जताई है – हालांकि यह अभी काल्पनिक लग सकता है, लेकिन यह बताता है कि देश में हालात कितने तनावपूर्ण हैं। सरकार की भूमिका सीमित होती जा रही है और सेना का वर्चस्व और स्पष्ट दिख रहा है।

लोकप्रियता सिर्फ कट्टरपंथी वर्गों तक सीमित

मुनीर की लोकप्रियता अब मुख्यधारा से हटकर कुछ कट्टरपंथी धार्मिक गुटों तक सीमित रह गई है। खासकर शहरी युवाओं, नागरिक समाज और लोकतांत्रिक संस्थानों में उनके प्रति संदेह और असंतोष गहराता जा रहा है।

बलूचिस्तान और खैबर पख्तूनख्वा में आतंकी हमलों पर असफलता

बलूचिस्तान और खैबर पख्तूनख्वा में आतंकी हमलों को रोकने में विफलता ने उनकी छवि को और नुकसान पहुंचाया है। विश्लेषकों का कहना है कि जब वो एलओसी पर ताकत दिखाने में व्यस्त थे, तब आंतरिक सुरक्षा पूरी तरह चरमरा गई।

रहस्यमय जीवन और गोपनीयता

मुनीर मीडिया से बहुत कम संवाद करते हैं और निजी जीवन पूरी तरह गोपनीय रखते हैं। कुछ रिपोर्टों में दावा किया गया है कि उनका परिवार विदेश – संभवतः ब्रिटेन या अमेरिका – में रहता है। हालांकि इसकी कोई आधिकारिक पुष्टि नहीं है। इस रहस्य ने उनकी नीयत, संबंधों और दीर्घकालिक मंसूबों को लेकर और सवाल खड़े किए हैं।

पाकिस्तान में जनरल असीम मुनीर अब न सिर्फ आलोचनाओं के घेरे में हैं, बल्कि उनकी नीतियों को लेकर सेना, विपक्ष और जनता के बीच एक साझा असंतोष बनता जा रहा है। अगर यह असंतोष यूं ही बढ़ता रहा, तो आने वाले समय में पाकिस्तान एक और राजनीतिक-सैन्य संकट की ओर बढ़ सकता है।

Categories: अंतरराष्ट्रीय समाचार पाकिस्तान