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"बेटी की कमाई पाप कैसे हो गई?" – टेनिस खिलाड़ी राधिका यादव की हत्या ने पूरे देश को झकझोरा

Published on July 11, 2025 by Priti Kumari

एक बेटी की हत्या, सिर्फ इसलिए कि वो आत्मनिर्भर थी

गुरुग्राम, हरियाणा: टेनिस खिलाड़ी राधिका यादव की निर्मम हत्या ने देशभर के लोगों को हिलाकर रख दिया है। 25 वर्षीय राष्ट्रीय स्तर की खिलाड़ी राधिका को उसके पिता दीपक यादव ने तीन गोलियां मारकर मौत के घाट उतार दिया। कारण – समाज के ताने कि "बेटी की कमाई खा रहा है।"

यह घटना न सिर्फ एक परिवार, बल्कि पूरे समाज के लिए आत्ममंथन का कारण बन गई है।

राधिका की पहचान – एक चमकता हुआ सितारा

हरियाणा, जो पारंपरिक रूप से कुश्ती और पहलवानी के लिए जाना जाता है, वहीं से राधिका ने टेनिस जैसे खेल में नाम कमाया। उन्होंने गुरुग्राम में अपनी खुद की टेनिस अकादमी शुरू की थी और कई उभरते खिलाड़ियों को प्रशिक्षित कर रही थीं। सोशल मीडिया पर सक्रिय थीं, मगर उनके वीडियो साफ-सुथरे और प्रेरणादायक होते थे।

बेटी की सफलता, बाप के लिए शर्म कैसे बन गई?

दीपक यादव को यह बात मंजूर नहीं थी कि उसकी बेटी उसे चला रही थी। मीडिया रिपोर्ट्स के अनुसार, रिश्तेदारों के तानों ने उसके "आत्मसम्मान" को ठेस पहुंचाई। उसने बेटी से अकादमी बंद करने को कहा, पर जब बेटी ने इनकार किया, तो उसने गोली चला दी।

"राधिका के रील्स और नाम से मुझे शर्म आती थी..." – दीपक यादव (पुलिस के समक्ष बयान)

बेटी बचाओ, बेटी पढ़ाओ... फिर भी मानसिकता वही पुरानी

हरियाणा में 'बेटी बचाओ, बेटी पढ़ाओ' अभियान के बाद लिंगानुपात में सुधार जरूर हुआ (871 से 910 तक), लेकिन गुरुग्राम जैसे जिलों में आज भी यह आंकड़ा 859 ही है। मानसिकता में बदलाव सिर्फ आँकड़ों से नहीं आता, सोच से आता है।

"बेटी की कमाई पाप क्यों?" – समाज से बड़ा सवाल

जब बेटे की कमाई पर कोई सवाल नहीं उठाता, तो बेटी की मेहनत समाज के लिए बोझ कैसे बन जाती है? क्या बेटियों को स्वतंत्रता देना सिर्फ एक चुनावी नारा बनकर रह गया है? क्या दीपक जैसे लोग आज भी 18वीं सदी की मानसिकता में जी रहे हैं?

हरियाणा की बेटियां और एक बदनुमा दाग

हरियाणा की धरती से ही विनेश फौगाट, मनु भाकर, निशा दहिया और साक्षी मलिक जैसी बेटियाँ निकलीं, जिन्होंने देश का नाम रोशन किया। मगर राधिका जैसी बेटियों की हत्या यह दिखाती है कि प्रगति की यात्रा अभी अधूरी है।

राधिका की हत्या हमें झकझोरती है और पूछती है:

  • क्या हम वाकई बेटियों को बराबरी का अधिकार दे रहे हैं?

  • क्या बेटियों की कमाई को हम सम्मान देते हैं?

  • क्या समाज ने अब तक स्त्री को संपत्ति समझा है, व्यक्ति नहीं?

यदि इन सवालों का जवाब "नहीं" है, तो यह घटना सिर्फ एक हत्या नहीं, पूरे समाज का पतन है।

 

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