बिहार विधानसभा चुनाव 2025 में एनडीए ने वह कर दिखाया जिसकी किसी को उम्मीद नहीं थी। शुरुआती रुझानों में जहाँ महागठबंधन मजबूती से मुकाबला कर रहा था, वहीं अंतिम दौर की गिनती में एनडीए ने 200 से अधिक सीटों पर बढ़त बनाकर इतिहास रच दिया।
इस ऐतिहासिक जीत के केंद्र में एक बार फिर बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार नजर आए—अपने अनुभव, रणनीति और अद्भुत राजनीतिक संतुलन के साथ।
राजनीति में उन्हें अक्सर “साइलेंट परफॉर्मर” कहा जाता है। इस बार भी उन्होंने शांति से चुनाव लड़ा, लेकिन नतीजे पूरे राज्य की राजनीति को हिला देने वाले साबित हुए।
आखिर नीतीश कुमार के तरकश में ऐसे कौन-से पांच ‘तीर’ थे, जिन्होंने एनडीए को बिहार चुनाव 2025 में ऐतिहासिक जीत की मंज़िल तक पहुँचा दिया?
चलिए, एक-एक कर समझते हैं—
सामाजिक इंजीनियरिंग का मास्टर स्ट्रोक—EBC, गैर-यादव OBC और महादलित वोट एकजुट
नीतीश कुमार की सबसे बड़ी ताकत हमेशा से उनकी “सामाजिक इंजीनियरिंग” रही है।
इस चुनाव में उन्होंने EBC (अति पिछड़ा वर्ग), गैर-यादव OBC और महादलित समुदाय को एक प्लेटफॉर्म पर लाने के लिए जमीनी स्तर पर रणनीति चलाई।
इन वोटरों का महागठबंधन से मोहभंग होता दिख रहा था, जिसका सीधा फायदा जदयू-एनडीए को मिला।
कई सीटों पर RJD का पारंपरिक समीकरण इसी वजह से टूट गया।
महिलाओं की ऐतिहासिक भागीदारी—‘लाड़ली वोटर’ बने नीतीश की ढाल
इस बार पहली बार बिहार में पुरुषों के मुकाबले 5 लाख से ज़्यादा महिलाओं ने मतदान किया।
नीतीश की योजनाएँ—
- कन्या उत्थान
- साइकिल योजना
- आरक्षण में बढ़ोतरी
- शिक्षा और स्वास्थ्य पर विशेष फोकस
इन सबने महिलाओं के बीच नीतीश की एक अलग ही पहचान बना दी है।
कई विशेषज्ञ मान रहे हैं कि “महिला वोट बैंक” ने इस बार चुनाव का पासा ही पलट दिया।
विकास + सुशासन की जोड़ी—नीतीश का भरोसेमंद ब्रांड
चुनाव प्रचार में नीतीश ज्यादा बोलते नहीं, मगर उनके काम बोलते हैं—
- सड़कें
- बिजली
- कानून व्यवस्था
- शिक्षा
- पंचायत स्तर पर प्रशासन
एनडीए का संदेश साफ था—
“काम हमने किया है, अब राज्य को स्थिरता की जरूरत है।”
यही भरोसा ग्रामीण और शहरी—दोनों तरह के वोटरों को अपनी तरफ खींच लाया।
NDA का मजबूत मैनेजमेंट—सीट शेयरिंग और केडर की एकजुटता
इस चुनाव में सीट-बंटवारा, उम्मीदवार चयन और गठबंधन की ट्यूनिंग बिल्कुल सटीक रही।
जदयू और भाजपा ने विवादों से दूर रहकर बेहद अनुशासित चुनाव अभियान चलाया।
महागठबंधन के अंदरूनी मतभेद, टिकट को लेकर नाराजगियाँ और स्थानीय स्तर पर फूट भी NDA के लिए बड़ा लाभ बन गईं।
नीतीश कुमार की “गठबंधन प्रबंधन कला” इस चुनाव में सबसे उजागर दिखी।
शांत लेकिन प्रभावी चुनाव प्रचार—नीतीश का ‘लो-प्रोफाइल हाई-इंपैक्ट’ मॉडल
जब विपक्ष आक्रामक नारों और बड़े वादों के सहारे मैदान में था, तब नीतीश एकदम शांत, संयमित और मर्यादा में अपनी बात जनता के सामने रखते रहे।
यह तरीका उन मतदाताओं को बहुत पसंद आया जो शोर नहीं, स्थिरता और भरोसा चाहते थे।
एनडीए की रैलियों में भीड़, जदयू और भाजपा कार्यकर्ताओं की जमीनी पकड़, तथा प्रधानमंत्री की कुछ बड़ी सभाओं ने माहौल को पूरी तरह NDA के पक्ष में मोड़ दिया।
अंतिम परिणाम—कैसे बदला बिहार का सियासी नक्शा?
2025 के बिहार चुनाव के बाद यह साफ हो गया है कि—
नीतीश कुमार आज भी बिहार की राजनीति में सबसे बड़े संतुलनकारी और निर्णायक नेता हैं।
उनके पांच ‘तीर’ ने न केवल एनडीए को सत्ता की राह दिखाई, बल्कि पूरे प्रदेश में एक बार फिर “सुशासन मॉडल” की स्वीकृति भी दिलाई।