पिछले कुछ वर्षों में किए गए अध्ययनों के मुताबिक जलवायु परिवर्तन, नाजुक भूभाग और वन क्षेत्र की हानि ने केरल के वायनाड जिले में विनाशकारी भूस्खलन के लिए आदर्श स्थिति उत्पन्न की। मंगलवार सुबह भारी बारिश के कारण वायनाड के पहाड़ी इलाकों में भूस्खलन की घटनाएं हुईं। भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (इसरो) के राष्ट्रीय सुदूर संवेदन केंद्र द्वारा पिछले वर्ष जारी भूस्खलन एटलस के अनुसार भारत के 30 सर्वाधिक भूस्खलन संवेदी जिलों में से 10 केरल में थे और वायनाड 13वें स्थान पर था। रपट में कहा गया है कि पश्चिमी घाटों में रहने वाले लोगों और परिवारों के ऊपर बहुत अधिक जोखिम है क्योंकि वहां जनसंख्या का घनत्व बहुत अधिक है विशेष रूप से केरल में। स्प्रिंगर की ओर से 2021 में प्रकाशित एक अध्ययन में कहा गया है कि केरल में सभी भूस्खलन संवेदी क्षेत्र पश्चिमी घाट क्षेत्र के इडुक्की, एर्नाकुलम, कोट्टायम, वायनाड, कोझीकोड और मलप्पुरम जिलों में केंद्रित थे। इसमें कहा गया है कि केरल में कुल भूस्खलन का लगभग 59 फीसद आबादी क्षेत्रों में हुआ। वायनाड में घटते वन क्षेत्र पर 2022 के एक अध्ययन से पता चला है कि 1950 और 2018 के बीच जिले में 62 फीसद वन गायब हो गए, जबकि आबादी क्षेत्र में लगभग 1,800 फीसद की वृद्धि हुई। ‘इंटरनेशनल जर्नल आफ एनवायरनमेंटल रिसर्च एंड पब्लिक हेल्थ’ में प्रकाशित अध्ययन में कहा गया है कि 1950 के दशक तक वायनाड का लगभग 85 फीसद क्षेत्र वन था। वैज्ञानिकों के अनुसार जलवायु परिवर्तन से पश्चिमी घाट में भूस्खलन की संभावना बढ़ रही है, जो दुनिया में जैविक विविधता के आठ ‘सबसे गर्म स्थानों’ में से एक है। कोचीन विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय में ‘एडवांस्ड सेंटर फार एटमास्फेरिक रडार रिसर्च’ के निदेशक एस अभिलाष बताया कि अरब सागर के गर्म होने से गहरे बादल बन रहे हैं, जिससे केरल में थोड़े समय में ही बहुत भारी बारिश हो रही है और भूस्खलन की आशंका बढ़ रही है। अभिलाष ने कहा कि हमारे शोध में पाया गया कि दक्षिण-पूर्व अरब सागर गर्म हो रहा है, जिससे केरल सहित इस क्षेत्र के ऊपर का वातावरण ऊष्मागतिकीय रूप से अस्थिर हो रहा है। उन्होंने कहा कि यह वायुमंडलीय अस्थिरता, जो गहरे बादलों के निर्माण की अनुमति देती है, जलवायु परिवर्तन से जुड़ी है। पहले, इस तरह की वर्षा मैंगलोर के उत्तर में उत्तरी कोंकण बेल्ट में अधिक आम थी। 2022 में ‘एनपीजे क्लाइमेट एंड एटमास्फेरिक साइंस जर्नल’ में प्रकाशित अभिलाष और अन्य वैज्ञानिकों के शोध में पाया गया कि भारत के पश्चिमी तट पर वर्षा अधिक संवहनीय होती जा रही है। संवहनीय वर्षा अक्सर एक छोटे से क्षेत्र में तीव्र, अल्पकालिक वर्षा या गरज के साथ होती है। अभिलाष और भारतीय उष्णकटिबंधीय मौसम विज्ञान संस्थान व विभाग के वैज्ञानिकों द्वारा 2021 में एल्सेवियर में प्रकाशित एक अन्य अध्ययन में पाया गया कि कोंकण क्षेत्र (14 डिग्री उत्तर और 16 डिग्री उत्तर के बीच) में भारी वर्षा के संभावित स्थान में से एक दक्षिण की ओर स्थानांतरित हो गया है, जिसके घातक परिणाम होने की संभावना है। अध्ययन में कहा गया है कि वर्षा की तीव्रता में वृद्धि मानसून के मौसम के दौरान पूर्वी केरल में पश्चिमी घाट के उच्च से मध्य-भूमि ढलानों में भूस्खलन की बढ़ती संभावना का संकेत दे सकती है। भूस्खलन ने पारिस्थितिकीविद माधव गाडगिल के नेतृत्व में सरकार द्वारा गठित ‘पश्चिमी घाट पारिस्थितिकी विशेषज्ञ पैनल’ की अनदेखी की गई चेतावनियों को भी सामने ला दिया। पैनल ने 2011 में केंद्र को अपनी रपट सौंपी, जिसमें सिफारिश की गई कि पूरी पहाड़ी श्रृंखला को पारिस्थितिक रूप से संवेदनशील क्षेत्र घोषित किया जाए और उनकी पारिस्थितिक संवेदनशीलता के आधार पर पारिस्थितिक रूप से संवेदनशील क्षेत्रों में विभाजित किया जाए।
वायनाड में घटते वन क्षेत्र पर 2022 के एक अध्ययन से पता चला है कि 1950 और 2018 के बीच जिले में 62 फीसद वन गायब हो गए, जबकि आबादी क्षेत्र में लगभग 1,800 फीसद की वृद्धि हुई।