असदुद्दीन ओवैसी की संसद की सदस्यता खतरे में, संसद में लगाया “जय फलस्तीन” का नारा


ऑल इंडिया मजलिस-ए-इत्तेहादुल मुस्लिमीन (AIMIM) के अध्यक्ष और हैदराबाद से लोकसभा सांसद असदुद्दीन ओवैसी की मुश्किलें बढ़ सकती हैं। संसद में “जय फलस्तीन” का नारा लगाने पर उनके खिलाफ राष्ट्रपति से शिकायत की गई है। इस शिकायत के आधार पर अब राष्ट्रपति को चुनाव आयोग से सलाह लेनी है, जिसके बाद ही यह स्पष्ट हो पाएगा कि असदुद्दीन ओवैसी की संसद सदस्यता बनी रहेगी या नहीं।लोकसभा में शपथ ग्रहण के दौरान असदुद्दीन ओवैसी ने “जय फलस्तीन” का नारा लगाया, जिससे राजनीतिक हलकों में हड़कंप मच गया। अधिवक्ता विष्णु शंकर जैन ने इस मामले में राष्ट्रपति से शिकायत की है, जिसमें उन्होंने संव‍िधान के अनुच्छेद 102 का हवाला देते हुए कहा कि अगर कोई सांसद किसी अन्य देश के प्रति निष्ठा जताता है, तो उसकी सदस्यता खतरे में पड़ सकती है।

संवैधानिक प्रावधान

संविधान के अनुच्छेद 102 के अनुसार, यदि संसद सदस्य किसी अन्य देश के प्रति निष्ठा प्रकट करता है, तो उसकी सदस्यता समाप्त हो सकती है। अधिवक्ता विष्णु शंकर जैन ने इस प्रावधान का हवाला देते हुए ओवैसी के खिलाफ शिकायत दर्ज की है। अब इस मामले पर राष्ट्रपति को चुनाव आयोग से सलाह लेनी है। संव‍िधान के अनुच्छेद 103 के अनुसार, इस प्रकार के अयोग्यता के मामलों में राष्ट्रपति चुनाव आयोग की सलाह के आधार पर अंतिम निर्णय लेते हैं।

राजनीतिक प्रतिक्रिया

इस घटना के बाद भाजपा, विश्व हिंदू परिषद (विहिप) और अन्य संगठनों ने ओवैसी के खिलाफ कड़ी कार्रवाई की मांग की है। उन्होंने इसे देश के खिलाफ निष्ठा का उल्लंघन बताया है। कई बुद्धिजीवियों और संगठनों ने भी ओवैसी के इस कृत्य की आलोचना की है और उनकी संसद सदस्यता समाप्त करने की मांग की है।

अब देखना यह होगा कि राष्ट्रपति इस मामले पर क्या निर्णय लेते हैं। चुनाव आयोग से सलाह लेने के बाद ही यह स्पष्ट हो पाएगा कि असदुद्दीन ओवैसी की संसद सदस्यता रहेगी या नहीं। इस प्रक्रिया में कुछ समय लग सकता है, लेकिन यह मामला राजनीतिक गलियारों में चर्चा का विषय बना हुआ है।

असदुद्दीन ओवैसी के “जय फलस्तीन” नारे ने उन्हें गंभीर संकट में डाल दिया है। संविधान के अनुच्छेद 102 और 103 के तहत उनकी सदस्यता पर सवाल उठाया गया है। अब राष्ट्रपति और चुनाव आयोग की संयुक्त सलाह के बाद ही यह तय होगा कि ओवैसी की संसद सदस्यता बरकरार रहेगी या नहीं। इस घटनाक्रम ने न केवल राजनीतिक, बल्कि कानूनी दृष्टिकोण से भी महत्वपूर्ण मोड़ लिया है।

इस मामले का अंतिम निर्णय राजनीतिक और कानूनी गलियारों में महत्वपूर्ण प्रभाव डाल सकता है, और इसे लेकर देशभर में चर्चा जारी है।

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