क्रीमी लेयर विवाद: आरक्षण के साथ भारत में कैसे होता है खिलवाड़?

Creamy Layer Dispute How reservation is tampered with in India
Creamy Layer Dispute How reservation is tampered with in India

हाल ही में सुप्रीम कोर्ट ने अनुसूचित जातियों (SC) और अनुसूचित जनजातियों (ST) के आरक्षण को लेकर एक महत्वपूर्ण फैसला सुनाया। अदालत ने कहा कि SC और ST में भी सब-कैटगरी के लिए आरक्षण दिया जा सकता है। यह फैसला लंबे समय से लंबित था और इसे जाति व्यवस्था के अंतिम पायदान पर खड़े समुदायों के लिए एक महत्वपूर्ण कदम माना जा रहा है।

राजनीतिक विश्लेषक योगेंद्र यादव ने इस फैसले पर अपनी राय व्यक्त की है। यादव ने इस फैसले को “अटपटा” बताते हुए कहा कि क्रीमी लेयर का मुद्दा अदालत के सामने नहीं था। उन्होंने कहा कि यह फैसला दुरुपयोग की संभावनाओं से भरा हुआ हो सकता है।

योगेंद्र यादव ने कहा कि क्रीमी लेयर का मुद्दा ओबीसी (अग्रणी जातियों) में लागू करने में समझ आता है, लेकिन SC और ST के संदर्भ में इसे लागू करना बहुत मुश्किल हो सकता है। उनके अनुसार, भारत में जाति व्यवस्था के भीतर विभिन्न स्तरों का अंतर है, और इसलिए विशेष कोटा की आवश्यकता है।

यादव ने बिहार का उदाहरण देते हुए बताया कि जातिगत जनगणना में विभिन्न जातियों के बीच शिक्षा और सामाजिक स्थिति में बड़ा अंतर है। उदाहरण के लिए, कुछ जातियों के भीतर शिक्षा प्राप्त लोगों की संख्या बहुत कम है, जबकि अन्य जातियों के भीतर यह संख्या काफी अधिक है। इस प्रकार के अंतर को देखते हुए, यादव ने विशेष कोटा की आवश्यकता पर जोर दिया।

योगेंद्र यादव ने चेतावनी दी कि अगर क्रीमी लेयर को लागू किया जाता है, तो इससे आरक्षण के साथ और भी खिलवाड़ हो सकता है। उन्होंने बताया कि योग्य उम्मीदवारों की कमी का बहाना बनाकर सीटों को सामान्य श्रेणी में परिवर्तित किया जा सकता है।

यादव ने सुझाव दिया कि क्रीमी लेयर को लागू करने के लिए उसकी परिभाषा बहुत ऊंची रखनी होगी। इसके साथ ही, यदि किसी को क्रीमी लेयर पर रखा जाता है, तो उसे SC और ST के आरक्षण को प्रभावित किए बिना, अंत में खड़ा किया जाना चाहिए। इस प्रकार, क्रीमी लेयर का प्रभावी ढंग से और पारदर्शिता के साथ लागू किया जाना आवश्यक है।

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