चंपई सोरेन, झारखंड के कोल्हान क्षेत्र के एक छोटे से गांव में जन्मे एक गरीब किसान के बेटे, जिन्होंने अपने सार्वजनिक जीवन की शुरुआत औद्योगिक घरानों के खिलाफ मजदूरों की आवाज़ उठाने से की थी। उनके संघर्ष का सफर झारखंड आंदोलन तक पहुंचा, जहां उन्होंने हमेशा जन-सरोकार की राजनीति को अपने जीवन का केंद्र बिंदु बनाया। सोरेन का मानना रहा है कि राज्य के आदिवासियों, मूलवासियों, गरीबों, मजदूरों, छात्रों और पिछड़े तबकों के लोगों को उनका अधिकार दिलवाना ही उनका जीवन उद्देश्य है। चाहे वे किसी पद पर रहे हों या न रहे हों, उन्होंने हमेशा जनता के मुद्दों को उठाया और उनके हक की लड़ाई लड़ी।
31 जनवरी को, इंडिया गठबंधन ने चंपई सोरेन को झारखंड के 12वें मुख्यमंत्री के रूप में सेवा करने के लिए चुना। मुख्यमंत्री बनने के बाद से, उन्होंने अपनी निष्ठा और समर्पण के साथ राज्य के प्रति अपने कर्तव्यों का पालन किया। उन्होंने राज्य की भलाई के लिए कई महत्वपूर्ण फैसले लिए, जिनमें समाज के हर तबके को ध्यान में रखते हुए निर्णय लिए गए। चंपई सोरेन ने अपने कार्यकाल के दौरान जनता की सेवा को सर्वोच्च प्राथमिकता दी, और हमेशा उनके लिए उपलब्ध रहे।
हालांकि, सत्ता की कुर्सी पर बैठने के कुछ ही महीनों बाद, 3 जुलाई को, चंपई सोरेन को अचानक एक अभूतपूर्व राजनीतिक संकट का सामना करना पड़ा। हूल दिवस के अगले दिन उन्हें सूचित किया गया कि अगले दो दिनों के उनके सभी कार्यक्रमों को पार्टी नेतृत्व द्वारा स्थगित करवा दिया गया है। इस दौरान, एक कार्यक्रम दुमका में और दूसरा पीजीटी शिक्षकों को नियुक्ति पत्र वितरण से संबंधित था। जब उन्होंने कारण जानना चाहा, तो उन्हें बताया गया कि गठबंधन द्वारा विधायक दल की एक बैठक बुलाई गई है, और वे मुख्यमंत्री के तौर पर किसी कार्यक्रम में शामिल नहीं हो सकते।
चंपई सोरेन ने इसे अपने जीवन का सबसे अपमानजनक क्षण बताया। एक मुख्यमंत्री के कार्यक्रमों को किसी अन्य व्यक्ति द्वारा रद्द करवा देना, उनके लिए अत्यधिक अपमानजनक था। उन्होंने इस अपमान का कड़वा घूंट पीते हुए भी अपने कर्तव्यों का पालन करने का निर्णय लिया, लेकिन जब उन्हें नियुक्ति पत्र वितरण कार्यक्रम में भी शामिल होने से रोका गया, तो वे भीतर से टूट गए। इस अपमान के बावजूद, सोरेन ने अपने आत्म-सम्मान को बनाए रखा और आत्म-मंथन करते हुए अपनी गलती तलाशने की कोशिश की।
विधायक दल की बैठक में, चंपई सोरेन को एजेंडा तक नहीं बताया गया। इस बैठक में उनसे अचानक इस्तीफा मांगा गया। सोरेन इस मांग से आश्चर्यचकित थे, लेकिन सत्ता का मोह उन्हें कभी नहीं रहा, इसलिए उन्होंने तुरंत इस्तीफा दे दिया। हालांकि, यह उनके आत्म-सम्मान पर लगी गहरी चोट थी, जो उन्हें भीतर तक झकझोर गई।
चंपई सोरेन ने अपने दिल की बात जाहिर करते हुए कहा कि विधायक दल की बैठक में उन्होंने अपने जीवन के नए अध्याय की शुरुआत की घोषणा की। उनके पास तीन विकल्प थे: राजनीति से संन्यास लेना, अपना अलग संगठन बनाना या किसी नए साथी के साथ आगे बढ़ना। इस फैसले ने उन्हें झारखंड की राजनीति में एक नया मोड़ देने का संकेत दिया है।
चंपई सोरेन ने कहा कि उनके लिए सभी विकल्प खुले हैं और आने वाले झारखंड विधानसभा चुनावों तक उनके जीवन का नया अध्याय शुरू हो चुका है। उनका यह बयान झारखंड की राजनीति में नए समीकरणों का संकेत देता है। अब यह देखना होगा कि वे किस दिशा में आगे बढ़ते हैं और राज्य की जनता का समर्थन किस हद तक उनके साथ होता है।
चंपई सोरेन की यह घोषणा और उनके द्वारा जाहिर की गई पीड़ा, झारखंड की राजनीति में एक नई शुरुआत का संकेत देती है। उनके संघर्ष, अपमान और आत्म-सम्मान की लड़ाई ने उन्हें एक ऐसे मोड़ पर खड़ा कर दिया है, जहां से वे नया रास्ता चुन सकते हैं। अब उनके समर्थक और झारखंड की जनता इस नई यात्रा में उनके साथ क्या रुख अपनाती है, यह आने वाला समय ही बताएगा।