सुप्रीम कोर्ट ने हाल ही में अनुसूचित जातियों (SC) और अनुसूचित जनजातियों (ST) के आरक्षण पर महत्वपूर्ण निर्णय लिया है। जस्टिस पंकज मिथल ने स्पष्ट किया कि आरक्षण केवल पहली पीढ़ी को ही मिलना चाहिए, जबकि दूसरी पीढ़ी को इसके लाभ से वंचित रहना चाहिए। यह विचार प्रक्रिया SC और ST में आरक्षण के वर्गीकरण को लेकर की गई एक अहम सुनवाई का हिस्सा थी।
सुप्रीम कोर्ट ने SC को मिलने वाले 15% आरक्षण में जातीय आधार पर सब-कोटे की मंजूरी दी है। 6-1 के बहुमत से कोर्ट ने कहा कि राज्यों को SC आरक्षण में जातीय आधार पर वर्गीकरण करने की अनुमति है, विशेषकर उन जातियों के लिए जो पिछड़ी हुई हैं और जिनका अधिक भेदभाव हुआ है।
जस्टिस मिथल ने सुझाव दिया कि यह समीक्षा की जानी चाहिए कि आरक्षण मिलने के बाद दूसरी पीढ़ी सामान्य वर्ग के स्तर पर आ गई है या नहीं। यदि ऐसा होता है, तो फिर एक पीढ़ी के बाद आरक्षण समाप्त हो जाना चाहिए। इस पर चीफ जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ ने कहा कि SC और ST वर्ग में भेदभाव के कारण समानता की स्थिति अभी भी पूरी तरह से नहीं आई है।
जस्टिस बेला एम. त्रिवेदी ने इस पर असहमति जताई, उनका कहना था कि SC को आरक्षण जाति के आधार पर नहीं बल्कि वर्ग के आधार पर मिलना चाहिए। चीफ जस्टिस चंद्रचूड़ ने भी इस बात को स्वीकार किया कि SC वर्ग में भी विभिन्नताएं हैं और संविधान का आर्टिकल 14 उप-वर्गीकरण की अनुमति देता है।
जस्टिस बीआर गवई ने इस फैसले के दौरान बीआर आंबेडकर का जिक्र करते हुए कहा कि आंबेडकर का उद्देश्य सामाजिक लोकतंत्र को बढ़ावा देना था, और राजनीतिक लोकतंत्र की तुलना में यह अधिक महत्वपूर्ण था। उन्होंने यह भी कहा कि अनुसूचित जाति में विभिन्न वर्गों के बीच भेदभाव की वास्तविकता को ध्यान में रखते हुए, आरक्षण का उद्देश्य समानता को सुनिश्चित करना होना चाहिए।