भारत के सात सबसे विनाशकारी भूस्खलन

India's seven most devastating landslides
India’s seven most devastating landslides

केदारनाथ आपदा (2013)

उत्तराखंड के रुद्रप्रयाग जिले में स्थित केदारनाथ मंदिर भगवान शिव को समर्पित एक प्रमुख तीर्थ स्थल है। यह मंदिर हिमालय की उच्च चोटियों के बीच स्थित है और हर साल हजारों तीर्थयात्री यहाँ आते हैं। 2013 में, केदारनाथ धाम में एक विनाशकारी भूस्खलन और बाढ़ ने भारी तबाही मचाई। इस आपदा के पीछे प्रमुख कारण भारी बारिश और ग्लेशियर के टूटने के परिणामस्वरूप बाढ़ थी। इसे भारत की सबसे भयानक प्राकृतिक आपदाओं में से एक माना जाता है।

सरकारी आंकड़ों के अनुसार, इस त्रासदी में 5,700 से अधिक लोगों की मौत हुई थी और 4,200 से अधिक गाँव बाढ़ की चपेट में आ गए थे। तीर्थयात्रियों के लिए मार्ग अवरुद्ध हो गए, और कई लोगों को हेलीकॉप्टर द्वारा बचाया गया। इस घटना ने न केवल मानव जीवन को प्रभावित किया, बल्कि इलाके की इन्फ्रास्ट्रक्चर और पर्यावरण को भी भारी नुकसान पहुँचाया। इस आपदा ने पुनर्वास और आपदा प्रबंधन के तरीकों पर गंभीर सवाल खड़े किए और सरकार ने भविष्य में ऐसी घटनाओं से निपटने के लिए नई योजनाएं बनाई।

दार्जिलिंग बाढ़ (1968)

4 अक्टूबर 1968 को पश्चिम बंगाल के दार्जिलिंग में विनाशकारी भूस्खलन के बाद बाढ़ ने तबाही मचाई। भारी बारिश के कारण हुए इस भूस्खलन ने राष्ट्रीय राजमार्ग को कई भागों में तोड़ दिया, जिससे परिवहन व्यवस्था पूरी तरह से बाधित हो गई। इस आपदा में 1000 से अधिक लोगों की जान चली गई और कई लोग बेघर हो गए। इसके अलावा, फसलें बर्बाद हो गईं और पेयजल संकट उत्पन्न हो गया। इस भूस्खलन ने दार्जिलिंग के प्राकृतिक सौंदर्य को भी प्रभावित किया और इसके पर्यटन उद्योग को भारी क्षति पहुंचाई।

मालपा भूस्खलन (1998)

अगस्त 1998 में उत्तर प्रदेश (अब उत्तराखंड) के मालपा में भीषण भूस्खलन की घटना घटी। सात दिनों तक लगातार भारी बारिश के कारण यह भूस्खलन हुआ, जिसमें 380 से अधिक लोगों की मौत हो गई। भूस्खलन से न केवल मानव जीवन प्रभावित हुआ, बल्कि इलाके की सड़कें, पुल, और अन्य बुनियादी ढाँचे भी नष्ट हो गए। इस घटना ने सरकार को इलाके में भूस्खलन की संभावना और उसके प्रभावों पर ध्यान देने के लिए मजबूर किया।

मालिन भूस्खलन (2014)

महाराष्ट्र के मालिन गाँव में 30 जुलाई 2014 को भारी वर्षा के कारण भूस्खलन हुआ, जिससे लगभग 151 लोगों की मृत्यु हो गई और 100 से अधिक लोग लापता हो गए। इस घटना ने पूरे गाँव को मलबे में दबा दिया और बचाव कार्यों में कई दिनों का समय लगा। इस आपदा ने सरकार और स्थानीय प्रशासन को जलवायु परिवर्तन और अनियोजित विकास के खतरों पर विचार करने के लिए मजबूर किया।

केरल भूस्खलन (2019)

साल 2019 में केरल में भीषण भूस्खलन की घटना घटी। 9 सितंबर 2019 को राज्य में हो रही लगातार बारिश के कारण इपाडी, पुटुपाला, वायनाड और भूदानम, नीलांबुर, मल्लापुरम में बड़े पैमाने पर भूस्खलन हुआ। राष्ट्रीय आपदा प्रतिक्रिया बल (NDRF) की पांच टीमें लगातार 16 दिनों तक तलाशी अभियान चलाती रहीं और 61 शवों को बरामद किया। इस आपदा ने राज्य को भारी नुकसान पहुँचाया और हजारों लोग बेघर हो गए।

गुवाहाटी भूस्खलन (1948)

सितंबर 1948 को असम के गुवाहाटी में भारी बारिश के बाद अचानक हुए भूस्खलन ने भारी तबाही मचाई। इस आपदा में 500 लोग मलबे में दब गए और कई घर नष्ट हो गए। यह घटना आज भी गुवाहाटी के इतिहास में एक काला अध्याय मानी जाती है। भूस्खलन के कारण नदियों में जलस्तर बढ़ गया, जिससे बाढ़ की स्थिति उत्पन्न हो गई और कई इलाकों में जीवन अस्त-व्यस्त हो गया।

केरल भूस्खलन (2020)

6 अगस्त, 2020 को केरल के इडुक्की जिले के एक चाय बागान पेटीमुडी में लगातार बारिश के कारण भूस्खलन हुआ, जिसमें 65 से अधिक श्रमिकों की मौत हो गई। इस आपदा ने पूरे इलाके को प्रभावित किया और राहत एवं बचाव कार्यों में कई चुनौतियाँ सामने आईं। इस घटना ने राज्य सरकार और प्रशासन को क्षेत्र में भूस्खलन के खतरों और उनसे निपटने के तरीकों पर पुनर्विचार करने के लिए मजबूर किया।


इन घटनाओं ने यह स्पष्ट कर दिया है कि भूस्खलन और बाढ़ जैसी प्राकृतिक आपदाओं से निपटने के लिए बेहतर तैयारी और योजना की आवश्यकता है। इन आपदाओं से हमें सीख लेनी चाहिए और भविष्य में ऐसी घटनाओं को रोकने के लिए ठोस कदम उठाने चाहिए। जलवायु परिवर्तन, अनियोजित विकास, और वन विनाश जैसी गतिविधियों पर नियंत्रण करके ही हम इन प्राकृतिक आपदाओं के प्रभाव को कम कर सकते हैं। इसके अलावा, जागरूकता और समुदाय आधारित आपदा प्रबंधन योजनाओं को बढ़ावा देना भी जरूरी है, ताकि लोग इन आपदाओं के लिए बेहतर तरीके से तैयार हो सकें।

प्राकृतिक आपदाओं से निपटने के लिए सतत विकास और पर्यावरण संरक्षण की दिशा में प्रयास करना आवश्यक है। इसके लिए सरकार, स्थानीय प्रशासन और आम जनता को मिलकर काम करना होगा। वृक्षारोपण, जल संरक्षण, और भूमि उपयोग की उचित योजना बनाकर हम भूस्खलन और बाढ़ की घटनाओं को कम कर सकते हैं।

आपदा प्रवण क्षेत्रों में सुरक्षित और मजबूत बुनियादी ढांचे का निर्माण भी महत्वपूर्ण है। घरों, सड़कों, और पुलों का निर्माण इस तरह से किया जाना चाहिए कि वे भूस्खलन और बाढ़ जैसी आपदाओं का सामना कर सकें। इसके लिए नवीनतम तकनीकों और इंजीनियरिंग समाधान का उपयोग करना चाहिए।

भविष्य की आपदाओं से निपटने के लिए तकनीकी नवाचारों का उपयोग भी महत्वपूर्ण है। भू-स्थानिक तकनीकों, सैटेलाइट इमेजरी, और अन्य आधुनिक उपकरणों का उपयोग करके हम संभावित भूस्खलन और बाढ़ के खतरे का पहले से अनुमान लगा सकते हैं और समय रहते उचित कदम उठा सकते हैं।

स्थानीय समुदायों को आपदा प्रबंधन के लिए प्रशिक्षित और सुसज्जित करना भी आवश्यक है। इसके लिए आपदा प्रबंधन प्रशिक्षण कार्यक्रम और जागरूकता अभियानों का आयोजन किया जाना चाहिए, जिससे स्थानीय लोग आपदा के समय सही कदम उठा सकें और खुद को और अपने समुदाय को सुरक्षित रख सकें।

सरकार और गैर-सरकारी संगठनों को मिलकर काम करना चाहिए और आपदा प्रबंधन के लिए एक समग्र दृष्टिकोण अपनाना चाहिए। इसके लिए आपदा प्रबंधन नीति, योजनाओं और कार्यक्रमों का निर्माण और कार्यान्वयन करना आवश्यक है। इसके अलावा, अंतर्राष्ट्रीय सहयोग और अनुभवों का आदान-प्रदान भी महत्वपूर्ण है, जिससे हम अन्य देशों के सफल आपदा प्रबंधन मॉडलों से सीख ले सकें।

भारत में भूस्खलन और बाढ़ जैसी प्राकृतिक आपदाओं ने कई बार विनाशकारी प्रभाव छोड़े हैं। इन घटनाओं से हमें सीख लेनी चाहिए और भविष्य में ऐसी आपदाओं से निपटने के लिए बेहतर तैयारी और योजना बनानी चाहिए। सतत विकास, पर्यावरण संरक्षण, सुरक्षित बुनियादी ढांचे का निर्माण, तकनीकी नवाचार, और समुदाय आधारित आपदा प्रबंधन जैसे कदम उठाकर हम इन आपदाओं के प्रभाव को कम कर सकते हैं और मानव जीवन और संपत्ति की सुरक्षा सुनिश्चित कर सकते हैं।

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