Makar Sankranti Khichdi: बिना खिचड़ी क्यों अधूरी है मकर संक्रांति?

मकर संक्रांति हिंदू धर्म का एक विशेष पर्व है, जिसे हर साल पौष मास के शुक्ल पक्ष की पंचमी तिथि को मनाया जाता है। इस दिन सूर्य देव मकर राशि में प्रवेश करते हैं, और यह दिन उत्तरायण की शुरुआत का प्रतीक होता है। मकर संक्रांति के इस पावन अवसर पर खिचड़ी खाने की परंपरा सदियों से चली आ रही है। शास्त्रों और धार्मिक मान्यताओं के अनुसार, मकर संक्रांति का त्योहार खिचड़ी के बिना अधूरा माना जाता है। आइए जानते हैं इसके पीछे के धार्मिक और ज्योतिषीय महत्व के बारे में।

खिचड़ी खाने का धार्मिक महत्व

खिचड़ी को हिंदू धर्म में एक पवित्र आहार के रूप में माना जाता है। इसे नवग्रह का प्रसाद माना जाता है और माना जाता है कि यह ग्रहों के दोषों से मुक्ति दिलाती है। जब मकर संक्रांति के दिन खिचड़ी का सेवन किया जाता है, तो यह व्यक्ति को ग्रह दोषों से छुटकारा दिलाता है। खिचड़ी में डाले जाने वाले सामग्री जैसे चावल, दाल, हल्दी, हरी सब्जियाँ, और गुड़ का विशेष संबंध ग्रहों से होता है, और ये सभी मिलकर एक अद्भुत प्रभाव डालते हैं।

खिचड़ी के बिना क्यों अधूरी होती है मकर संक्रांति?

मकर संक्रांति पर खिचड़ी खाने की परंपरा का एक गहरा धार्मिक और ज्योतिषीय महत्व है। इसे विशेष रूप से इसलिए किया जाता है क्योंकि खिचड़ी में डाले जाने वाले तत्वों का नवग्रहों से सीधा संबंध होता है, जिससे सभी ग्रहों का प्रभाव मजबूत होता है और ग्रह दोषों से मुक्ति मिलती है।

खिचड़ी के साथ जुड़े ग्रहों के प्रभाव:

  1. चावल: चावल का संबंध चंद्रमा और शुक्र से होता है। यह शांति और मानसिक संतुलन के लिए लाभकारी होते हैं।
  2. काली दाल: काली दाल का सेवन और दान करने से शनि, राहू, और केतु के दुष्प्रभाव समाप्त होते हैं।
  3. हल्दी: हल्दी का संबंध बृहस्पति से होता है, जो शुभता और ज्ञान का प्रतीक है।
  4. घी: खिचड़ी में डाला जाने वाला घी सूर्य के साथ जुड़ा होता है, जो जीवन में ऊर्जा और शक्ति का प्रतीक है।
  5. गुड़: गुड़ का संबंध मंगल से है, जो शौर्य और सामर्थ्य का प्रतीक माना जाता है।
  6. हरी सब्जियाँ: हरी सब्जियाँ बुध ग्रह से संबंधित होती हैं और यह बुद्धिमानी और संचार में सुधार लाती हैं।

इन सभी तत्वों का संयोजन मकर संक्रांति के दिन खिचड़ी के रूप में ग्रहों के दोषों को दूर करता है और व्यक्ति को शांति, समृद्धि और सकारात्मकता का आशीर्वाद प्राप्त होता है।

कहां से शुरू हुई खिचड़ी बनाने की परंपरा?

खिचड़ी खाने की परंपरा का संबंध एक पौराणिक कथा से है, जो बाबा गोरखनाथ से जुड़ी हुई है। मान्यताओं के अनुसार, बाबा गोरखनाथ ने खिलजी से युद्ध लड़ते समय भोजन पकाना और खाना छोड़ दिया था, जिसके कारण उनका शरीर कमजोर होने लगा। इस समस्या का समाधान निकालने के लिए उन्होंने दाल, चावल, और सब्ज़ी को मिलाकर एक सरल और पौष्टिक भोजन बनाने की सलाह दी, जिसे खिचड़ी कहा गया। तभी से मकर संक्रांति के दिन बाबा गोरखनाथ को खिचड़ी का विशेष भोग अर्पित करने की परंपरा शुरू हुई।

मकर संक्रांति पर खिचड़ी खाने का अन्य महत्व:

  • पुण्य का लाभ: मकर संक्रांति के दिन खिचड़ी खाने से व्यक्ति को पुण्य की प्राप्ति होती है और यह उसे शारीरिक, मानसिक और आत्मिक शांति प्रदान करता है।
  • दान की परंपरा: मकर संक्रांति पर खिचड़ी दान करना भी एक महत्वपूर्ण परंपरा है, जिससे व्यक्ति को धन्य और आध्यात्मिक उन्नति मिलती है। लोग खिचड़ी का दान करके पापों से मुक्ति प्राप्त करने की कोशिश करते हैं।

निष्कर्ष:

मकर संक्रांति एक ऐसा पर्व है, जो सूर्य के उत्तरायण होने के साथ जुड़ा है और इस दिन को विशेष रूप से खिचड़ी खाने का महत्व है। खिचड़ी के सेवन से ग्रह दोषों का निवारण होता है और व्यक्ति को शांति और समृद्धि का आशीर्वाद मिलता है। इस दिन का खास महत्व बाबा गोरखनाथ की कथा से जुड़ा हुआ है, और यह परंपरा सदियों से चली आ रही है। मकर संक्रांति के दिन खिचड़ी का सेवन और दान दोनों ही व्यक्ति को शांति और पुण्य की प्राप्ति में सहायक होते हैं।