सुप्रीम कोर्ट ने बुधवार को कहा कि बाल विवाह में संलिप्त लोगों पर मुकदमा चलाने से इस समस्या का समाधान नहीं होगा। क्योंकि, इसके सामाजिक आयाम हैं। शीर्ष अदालत ने केंद्र सरकार की उस दलील पर भी असंतोष जताया कि राज्यों में बाल विवाह के खिलाफ जागरूकता अभियान व प्रशिक्षण कार्यक्रम चलाए जा रहे हैं। साथ ही कहा कि इस तरह के कार्यक्रम जमीनी स्तर पर वास्तव में सुधार लाने में कारगर साबित नहीं होते हैं। इसके साथ ही शीर्ष अदालत ने देश में बाल विवाह के मामलों के खिलाफ दायर जनहित याचिका पर अपना फैसला सुरक्षित रख लिया। गैर सरकारी संगठन (एनजीओ) ‘सोसाइटी फार एनलाइटनमेंट एंड वालंटरी एक्शन’ ने वर्ष 2017 में शीर्ष अदालत में जनहित याचिका दायर कर आरोप लगाया था कि बाल विवाह प्रतिषेध अधिनियम को कड़ाई से लागू नहीं किया जा रहा है। इस कारण देश में बाल विवाह की घटनाएं भी नहीं थम रही हैं। प्रधान न्यायाधीश डीवाई चंद्रचूड़, न्यायमूर्ति जेबी पारदीवाला और न्यायमूर्ति मनोज मिश्रा की पीठ ने बुधवार को इस पर सुनवाई के दौरान याचिकाकर्ता के वकील और केंद्र की ओर से पेश अतिरिक्त सालिसिटर जनरल ऐश्वर्या भाटी की दलीलें सुनीं और फैसला सुरक्षित रख लिया। पीठ ने कहा, ‘यह केवल अभियोजन का मामला नहीं है। बाल विवाह में शामिल लोगों पर मुकदमा चलाने से समस्या का समाधान नहीं होगा, क्योंकि इसके सामाजिक आयाम हैं।’ अदालत ने इसी के साथ दोनों पक्षों के वकीलों से इस मुद्दे से निपटने के लिए आगे के उपाय सुझाने को कहा।