अपरंपार है गायत्री मंत्र का महत्त्व

गायत्री मंत्र का उल्लेख हिंदू धर्म के सबसे पुराने पवित्र ग्रंथों में से एक ऋवेद में मिलता है। प्राचीन मान्यताओं के अनुसार गायत्री मंत्र की उत्पत्ति ऋषि विश्वामित्र द्वारा की गई थी। जब इंद्र ने मेनका का रूप धारण करके विश्वामित्र की तपस्या भंग की, तब विश्वामित्र ने ध्यान लगाने का कई बार प्रयास किया। लेकिन, उन्हें सफलता नहीं मिली। तब विश्वामित्र ने ईश्वर का ध्यान करते हुए ‘ॐ भूर्भुवः स्वः तत्सवितुर्वरेण्यं, भर्गो देवस्य धीमहि, धियो यो नः प्रचोदयात’ मंत्र का उच्चारण किया। इस मंत्र का जाप करने के बाद विश्वामित्र की तपस्या सफल हो गई। साथ ही ऐसी मान्यता है कि इस प्रसंग के बाद ब्रह्मा ने विश्वामित्र को ‘ऋषि’ की उपाधि दी थी। गायत्री मंत्र की उत्पत्ति से जुड़ी एक अन्य पौराणिक कथा के अनुसार गायत्री ब्रह्मा की पत्नी थीं। सृष्टि में ज्ञान व चैतन्य शक्ति गायत्री का स्वरूप है। ब्रह्मा ने चार वेदों की रचना से पहले 24 अक्षर वाले गायत्री मंत्र की रचना की थी। गायत्री मंत्र का प्रत्येक अक्षर अपने आप में संपूर्ण ज्ञान को समाहित किए हुए है। इसमें सभी सूक्ष्म तत्व समाहित हैं। इसके पश्चात ब्रह्मा एवं गायत्री के संयुक्त प्रभाव के बाद वेदों का जन्म हुआ। शास्त्रों के अनुसार सृष्टि के आरंभ में ब्रह्मा के मुख से गायत्री मंत्र प्रकट हुआ था। मां गायत्री की कृपा से ब्रह्मा ने गायत्री मंत्र की व्याख्या अपने चारों मुखों से चार वेदों के रूप में की थी। आरंभ में मां गायत्री की महिमा सिर्फ देवताओं तक ही थी, लेकिन महर्षि विश्वामित्र ने कठोर तपस्या कर मां की महिमा अर्थात गायत्री मंत्र को जन-जन तक पहुंचाया। कहा जाता है कि इस मंत्र में चारों वेदों का सार छिपा है। ‘पृथ्वी लोक, भूलोक और स्वर्गलोक में व्याप्त उस सृष्टिकर्ता, परमात्मा के तेज का हम ध्यान करते हैं। हमारी बुद्धि को सही मार्ग की ओर चलने के लिए प्रेरित करें’, इस मंत्र का शाब्दिक अर्थ है। हिंदू धर्म में गायत्री मंत्र को अत्यंत ही पवित्र माना जाता है। गायत्री मंत्र का जाप करने से जातक के मन में सकारात्मक ऊर्जा का प्रवाह होता है। माना जाता है कि गायत्री मंत्र चेतना और बुद्धि का मंत्र है। गायत्री मंत्र का उच्चारण करने से मन को शांति मिलती है तथा मानसिक विकारों का नाश होता है। ध्यान केंद्रित करने में सहायता होती है। शरीर को सकारात्मक ऊर्जा मिलती है। शरीर की रोग प्रतिरोधक क्षमता भी बढ़ती है। इस मंत्र का जाप बिना स्नान किए नहीं करना चाहिए। मंत्र का जाप करने के लिए रुद्राक्ष या अन्य माला का प्रयोग करना चाहिए। हमेशा एकांत स्थान में मंत्र का जाप करना चाहिए। मंत्र जाप के दौरान बाधा उत्पन्न करने वाली चीजों से दूर रहना चाहिए। सूर्योदय से पहले अथवा सूर्य के उदित होने के तुरंत बाद इस मंत्र का जाप करें। संध्या काल में सूर्यास्त से पहले ही गायत्री मंत्र का जाप कर लें। रात्रि के समय गायत्री मंत्र का जाप करना निषेध होता है। अपने इष्ट देवी- देवताओं की विधि विधान से पूजा करने के बाद 108 बार गायत्री मंत्र का जाप करना चाहिए। ऐसा माना जाता है कि इस मंत्र का नियमित पाठ मन को शुद्ध कर सकता है, विचारों की स्पष्टता को बढ़ावा दे सकता है और आत्म-साक्षात्कार की ओर ले जा सकता है। हिंदू धर्म में इसे एक सार्वभौमिक प्रार्थना माना जाता है जो जाति, पंथ और धर्म की सभी सीमाओं से परे है। ऐसा माना जाता है कि इसमें अंधकार और अज्ञान को दूर करने और हमारे भीतर दैवीय गुणों को जागृत करने की शक्ति है। कहा जाता है कि गायत्री मंत्र का जाप करने से शारीरिक और आध्यात्मिक दोनों स्तरों पर कई लाभ होते हैं। ऐसा माना जाता है कि यह एकाग्रता बढ़ाता है, याददाश्त में सुधार करता है और समग्र कल्याण को बढ़ावा देता है।

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