Shiva Mantra:पूजा-अर्चना के बाद जब वातावरण में घंटियां गूंजती हैं, दीपक की लौ स्थिर होती है और मन शांत होता है, उसी समय एक पावन मंत्र हर घर और मंदिर में सुनाई देता है—
“कर्पूरगौरं करुणावतारं…”
यह मंत्र सिर्फ स्तुति नहीं, बल्कि भगवान शिव के दिव्य स्वरूप का अनुभव है। मान्यता है कि इस मंत्र का नियमित जप मन के भय, चिंता, नकारात्मक विचारों और मानसिक तनाव को दूर करता है।
शिव–पार्वती विवाह से जुड़ा पवित्र मंत्र
कथाओं के अनुसार भगवान विष्णु ने यह मंत्र शिव–पार्वती विवाह के समय गाया था। इसी वजह से यह अत्यंत शुभ माना जाता है और कैलाशपति शिव की सौम्यता, शांति और करुणा का वर्णन करता है।
मंत्र में शिवजी के स्वरूप को इस प्रकार बताया गया है:
कर्पूर (कपूर) की तरह उज्ज्वल
अनंत करुणा से भरे
नागों को आभूषण की तरह धारण करने वाले
माता पार्वती के साथ हृदय के स्वामी
शिव का वास्तविक, सौम्य और कल्याणकारी रूप
अक्सर लोग शिव के अघोर रूप को ही अंतिम सत्य मान लेते हैं, लेकिन यह मंत्र बताता है कि शिव का मूल स्वरूप बेहद शीतल, दयालु और कल्याणकारी है।
वे पशुपतिनाथ हैं—सभी जीवों के स्वामी और संरक्षक।
यह मंत्र शिव के इसी मृदुल रूप से जुड़ने का माध्यम है।
आरती के बाद इस मंत्र का विशेष महत्व
आरती का समय घर और मंदिर में ऊर्जा के अत्यधिक सक्रिय होने का क्षण माना जाता है। ऐसे में जब यह मंत्र पढ़ा जाता है, तो इसका प्रभाव और अधिक बढ़ जाता है।
इसके लाभ—
मन तुरंत शांत होता है
घर में पॉजिटिव एनर्जी बढ़ती है
नकारात्मक विचार कम होते हैं
डर, चिंता और मानसिक दबाव दूर होता है
इसलिए पूजा के अंत में यह मंत्र वातावरण को शांति और सुरक्षा का भाव देता है।
मंत्र का आध्यात्मिक संदेश
इस मंत्र का सार बिल्कुल सरल है:
“हे भोलेनाथ! आप और माँ पार्वती हमारे हृदय में वास करें और हमें हर तरह की भय, दुख और नकारात्मकता से मुक्त रखें।”
यही वजह है कि यह मंत्र सदियों से आस्था और शांति का सबसे शक्तिशाली माध्यम माना जाता है।