पश्चिम बंगाल में मतुआ समुदाय आज सैनिक और नागरिक पहचान को लेकर एक दुविधा में है। यह समुदाय मुख्यतः पूर्वी पाकिस्तान (अब बांग्लादेश) से आए हिंदू शरणार्थियों का है, जो दशकों से बंगाल में स्थायी रूप से बस चुके हैं। Citizenship Amendment Act (CAA) के तहत उन्हें नागरिकता मिलने की उम्मीद है, क्योंकि इससे वे लंबे समय से दस्तावेजों की कमी और सरकारी सुविधाओं में दिक्कत से बाहर निकल सकते हैं। वहीं, Special Intensive Revision (SIR) की प्रक्रिया ने उनके सामने नई चिंता खड़ी कर दी है। SIR के तहत वोटर सूची को साफ़ किया जा रहा है और जिनके पास पुराने पारिवारिक दस्तावेज नहीं हैं, उन्हें मतदाता सूची से हटाए जाने का डर है।
इस बीच, राजनीतिक स्तर पर भी मतुआ समुदाय का महत्व बढ़ गया है। बीजेपी CAA को उनके लिए लाभकारी बताकर वोट बैंक मजबूत करने की कोशिश कर रही है, जबकि TMC SIR की आलोचना कर रही है और कह रही है कि इससे मतुआ समुदाय को डराया और मताधिकार से वंचित किया जा सकता है। समुदाय के लोग इस बीच असमंजस में हैं — क्योंकि CAA आवेदन के बाद उन्हें अप्रवासी घोषित किया जा सकता है, वहीं SIR में आवश्यक दस्तावेज न होने पर वोटर सूची से हटाया जा सकता है। बंगाल के कई इलाके मतुआ बहुल हैं और उनका वोटिंग पैटर्न चुनावों की दिशा तय कर सकता है, इसलिए यह मुद्दा राजनीतिक और सामाजिक रूप से बेहद संवेदनशील बन गया है।