बिहार विधानसभा चुनाव के बीच पटना जिले की दानापुर सीट सियासी चर्चाओं के केंद्र में है। इस सीट से आरजेडी ने जेल में बंद रीतलाल यादव को उम्मीदवार बनाया है, जिनके समर्थन में खुद लालू प्रसाद यादव ने रोड शो कर माहौल गर्मा दिया।
यादव वोट बैंक पर पकड़ मजबूत करने की कोशिश
दानापुर विधानसभा में यादव मतदाता बड़ी संख्या में हैं। अनुमान है कि यहां करीब 80 से 90 हजार यादव वोटर हैं। लालू यादव की रणनीति साफ है—इस वोट बैंक को अपने पक्ष में पूरी तरह एकजुट करना। चूंकि बीजेपी प्रत्याशी रामकृपाल यादव भी इसी समुदाय से आते हैं, इसलिए यह मुकाबला यादव बनाम यादव की सियासत में बदल चुका है।
मीसा भारती की सियासत से जुड़ा है समीकरण
दानापुर विधानसभा क्षेत्र पाटलिपुत्र लोकसभा सीट का हिस्सा है, जहां से लालू की बेटी मीसा भारती सांसद हैं। ऐसे में रीतलाल की जीत मीसा के लिए सियासी तौर पर राहत ला सकती है। दानापुर में आरजेडी की जीत से लोकसभा स्तर पर भी मीसा भारती की पकड़ और मजबूत होगी।
रामकृपाल से ‘पुराना हिसाब’ बराबर करने की चाल
रामकृपाल यादव कभी लालू के बेहद करीबी माने जाते थे, लेकिन साल 2014 में उन्होंने आरजेडी छोड़कर बीजेपी का दामन थाम लिया। तब से लालू और रामकृपाल के बीच राजनीतिक तल्खी बरकरार है। माना जा रहा है कि दानापुर में उतरकर लालू यादव अपने पुराने सहयोगी से ‘राजनीतिक बदला’ लेना चाहते हैं।
जेल में बंद उम्मीदवार पर भरोसा क्यों
रीतलाल यादव भले ही जेल में बंद हों, लेकिन इलाके में उनकी पकड़ और प्रभाव मजबूत माना जाता है। स्थानीय स्तर पर उन्हें “जनता का नेता” कहा जाता है। लालू यादव का रीतलाल पर भरोसा दिखाता है कि आरजेडी अब भी “माय (मुस्लिम-यादव)” समीकरण पर भरोसा कर रही है।
नतीजों से तय होगी नई सियासी दिशा
दानापुर की यह लड़ाई केवल एक विधानसभा सीट की नहीं, बल्कि लालू परिवार की सियासी प्रतिष्ठा से जुड़ी है। अगर रीतलाल यादव जीतते हैं, तो यह लालू के लिए दोहरा फायदा होगा—एक ओर रामकृपाल से हिसाब बराबर होगा, तो दूसरी ओर मीसा भारती की राह और आसान बन जाएगी।
निष्कर्ष:
दानापुर में आरजेडी और बीजेपी के बीच यह चुनाव सियासी अहं और जातीय समीकरणों की लड़ाई बन चुका है। लालू यादव की इस सीट पर सीधी एंट्री बताती है कि वे अब भी बिहार की राजनीति में “किंगमेकर” नहीं, बल्कि “किंग” बनने की कोशिश में हैं।