भारत के युवा शतरंज खिलाड़ी गुकेशदोम्माराजू ने इतिहास रचते हुए विश्व शतरंज चैंपियनशिप जीतने वाले सबसे कम उम्र के खिलाड़ी बनने का गौरव प्राप्त किया है। चेन्नई के इस 18 वर्षीय चमत्कारी खिलाड़ी ने चीन के ग्रैंडमास्टर डिंगलिझेन को हराकर यह खिताब अपने नाम किया। उनकी इस उपलब्धि ने न केवल भारतीय शतरंज को नई ऊंचाई पर पहुंचाया, बल्कि उनकी कड़ी मेहनत और समर्पण की भी गवाही दी।
ध्यानऔरतैयारीसेमिलीजीत
गुकेश की एक खास आदत है: किसी भी खेल की शुरुआत से पहले वह अपनी आंखें बंद कर ध्यान केंद्रित करते हैं। इस बार उनकी यह ध्यान-प्रक्रिया उन्हें विश्व विजेता बनाने का जरिया बनी। उन्होंने अपनी मानसिक मजबूती और गहन रणनीति से यह साबित कर दिया कि उम्र केवल एक संख्या है।
गुकेशनेक्याकहा?
उन्होंने अपनी ऐतिहासिक जीत के बाद कहा: “डिंगलिझेनशतरंजकीदुनियाकेमहानतमखिलाड़ियोंमेंसेएकहैं।उनकेसाथयहमुकाबलामेरेलिएबेहदचुनौतीपूर्णऔरप्रेरणादायकथा।हालांकि, मैंखुशहूंकिमेरीमेहनतरंगलाई।“
ऐतिहासिकमुकाबला
2024 की फिडेवर्ल्डशतरंजचैंपियनशिप का आयोजन सिंगापुर में हुआ। यह टूर्नामेंट 25 नवंबर से 13 दिसंबर तक चला। इस चैंपियनशिप का महत्व इसलिए भी बढ़ गया क्योंकि 138 साल के इतिहास में पहली बार खिताबी मुकाबले में दो एशियाई खिलाड़ी आमने-सामने थे।
चैंपियनशिप के 14 राउंड में से 13वें राउंड तक स्कोर बराबरी पर था। ऐसे में यह मुकाबला न केवल रोमांचक था, बल्कि शतरंज प्रेमियों के लिए एक यादगार अनुभव बन गया।
गुकेशकीसफलताकासफर
बचपनऔरशुरुआत
गुकेश का जन्म चेन्नई में हुआ, जिसे भारत की शतरंज राजधानी माना जाता है। हालांकि उनके परिवार में कोई शतरंज खिलाड़ी नहीं था, फिर भी उनकी रुचि ने उन्हें इस खेल का चैंपियन बना दिया।
छोटी उम्र से ही गुकेश ने अनौपचारिक रूप से शतरंज खेलना शुरू किया। उनके पिता ने उन्हें स्कूल के बाद शतरंज कक्षाओं में भेजना शुरू किया, ताकि वह व्यस्त रह सकें। उनके कोच ने जल्दी ही उनकी प्रतिभा को पहचान लिया और उन्हें पेशेवर ट्रेनिंग दिलाने की सलाह दी।
शुरुआतीउपलब्धियां
2015: गोवा में नेशनल स्कूल शतरंज चैंपियनशिप जीतकर राष्ट्रीय स्तर पर पहचान बनाई।
2019: केवल 12 वर्ष की उम्र में ग्रैंडमास्टर बने। वह भारत के सबसे कम उम्र के ग्रैंडमास्टर बने और दुनिया में तीसरे सबसे कम उम्र के खिलाड़ी थे।
2021: यूरोपियन चेस क्लब कप में उन्होंने मैग्नसकार्लसन जैसे महान खिलाड़ी के खिलाफ मुकाबला किया।
रिकॉर्डऔररैंकिंग
गुकेश, भारत में दूसरेस्थान और विश्व में पांचवेंस्थान पर हैं।
वह ELO रैंकिंग में 2750 अंक पार करने वाले सबसे युवा खिलाड़ी हैं।
10 अंतरराष्ट्रीय खिताब जीत चुके हैं, जिनमें 2020 का केन्सओपन और 2023 के नॉर्वेगेम्स शामिल हैं।
परिवारकायोगदान
पिताकात्याग
गुकेश के पिता डॉ. रजनीकांत एक ईएनटी सर्जन हैं। बेटे की शतरंज में दिलचस्पी को देखकर उन्होंने अपना मेडिकल करियर छोड़ दिया और पूरी तरह से बेटे की ट्रेनिंग और जरूरतों पर ध्यान केंद्रित किया।
उन्होंने कहा: “मेरीभूमिकाकेवलउन्हेंटूर्नामेंटतकलेजानेऔरअन्यजरूरतेंपूरीकरनेतकसीमितथी।शतरंजकीरणनीतिउनकेकोचऔरवहखुदतयकरतेथे।“
मांकासाथ
गुकेश की मां डॉ. पद्माकुमारी, मद्रास मेडिकल कॉलेज में असिस्टेंट प्रोफेसर हैं। उन्होंने भी बेटे को शतरंज के प्रति प्रेरित किया और हर संभव मदद की।
मानसिकमजबूतीऔरयोगकायोगदान
गुकेश ने हाल ही में एक इंटरव्यू में बताया कि योगाभ्यास ने उनके खेल को बहुत निखारा।
उन्होंने कहा: “मैंपहलेहारकेबादनिराशहोजाताथा, लेकिनअबमैंआधेघंटेकेभीतरखुदकोसंभाललेताहूंऔरअगलीबाजीपरध्यानकेंद्रितकरताहूं।“
व्यक्तिगतरुचियां
पसंदीदाभोजन: दक्षिण भारतीय डोसा और दही-चावल।
पसंदीदाफिल्में: हिंदी सिनेमा से उन्हें बेहद लगाव है।
खासपल: हाल ही में उन्हें पारंपरिक धोती-कुर्ता में रजनीकांत की फिल्म ‘वेट्टैयन’ के गाने पर नाचते देखा गया।
भविष्यकीउम्मीदें
गुकेश की यह जीत भारतीय शतरंज के लिए एक नया अध्याय है। विश्वनाथन आनंद के बाद गुकेश ने यह साबित कर दिया कि भारत में शतरंज की गहरी परंपरा है। उनकी यह यात्रा न केवल प्रेरणादायक है, बल्कि यह दिखाती है कि मेहनत, लगन और परिवार के समर्थन से हर सपना पूरा किया जा सकता है।