
झारखंड के पूर्व मुख्यमंत्री और झारखंड मुक्ति मोर्चा (JMM) के संस्थापक शिबू सोरेन का सोमवार सुबह दिल्ली के सर गंगाराम अस्पताल में निधन हो गया। 81 वर्षीय शिबू सोरेन लंबे समय से बीमार थे और लगभग एक महीने से लाइफ सपोर्ट सिस्टम पर थे। सुबह 8:56 बजे उनका निधन हो गया। इस दुखद समाचार की पुष्टि उनके पुत्र और वर्तमान मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन ने सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म ‘X’ (जिसे पहले ट्विटर कहा जाता था) के माध्यम से की।
मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन ने भावुक होकर लिखा, “आदरणीय दिशोम गुरुजी हम सबको छोड़कर चले गए। आज मैं शून्य हो गया हूँ…”। ये शब्द न केवल एक पुत्र के दर्द को दर्शाते हैं, बल्कि झारखंड के उन लोगों की भावनाओं को भी दर्शाते हैं जिन्होंने दशकों से उन्हें अपना मार्गदर्शक माना है।
लंबी बीमारी और अस्पताल में इलाज
शिबू सोरेन का स्वास्थ्य पिछले कुछ महीनों से लगातार बिगड़ रहा था। सर गंगाराम अस्पताल में भर्ती होने के बाद, उन्हें गुर्दे से संबंधित जटिलताएँ हुईं, जिससे उनके शरीर में संक्रमण बढ़ गया। डॉक्टरों के अनुसार, बाद में उन्हें स्ट्रोक हुआ, जिससे उनकी हालत और गंभीर हो गई। कई हफ़्तों तक आईसीयू में रहने के बाद, उन्होंने अंततः अंतिम साँस ली।
राजनीतिक जीवन और संघर्ष की शुरुआत
शिबू सोरेन का राजनीतिक जीवन एक आंदोलनकारी के रूप में शुरू हुआ। उन्होंने 1970 और 80 के दशक में झारखंड को अलग राज्य का दर्जा दिलाने के लिए ज़ोरदार आंदोलन किए। 1972 में उन्होंने झारखंड मुक्ति मोर्चा (JMM) की स्थापना की, जिसका मुख्य उद्देश्य आदिवासियों के अधिकारों की रक्षा करना और झारखंड को अलग राज्य का दर्जा दिलाना था।
उनका राजनीतिक सफ़र संघर्षों से भरा रहा, लेकिन उन्होंने कभी हार नहीं मानी। उन्होंने आदिवासी समाज में जंगल, ज़मीन और पानी के अधिकारों के लिए एक नई चेतना का संचार किया।
तीन बार झारखंड के मुख्यमंत्री बने
शिबू सोरेन तीन बार झारखंड के मुख्यमंत्री बने। हालाँकि, बार-बार राजनीतिक अस्थिरता के कारण उनका कार्यकाल अल्पकालिक रहा:
- पहली बार: 2 मार्च 2005 को मुख्यमंत्री बने, लेकिन बहुमत साबित न कर पाने के कारण 10 दिन बाद 12 मार्च 2005 को उन्हें इस्तीफ़ा देना पड़ा।
- दूसरी बार: 27 अगस्त 2008 से 19 जनवरी 2009 तक मुख्यमंत्री रहे।
- तीसरी बार: 30 दिसंबर 2009 को एक बार फिर मुख्यमंत्री बने, लेकिन यह कार्यकाल भी 1 जून 2010 तक ही चला।
केंद्रीय राजनीति में योगदान
शिबू सोरेन न केवल राज्य बल्कि राष्ट्रीय राजनीति में भी एक महत्वपूर्ण चेहरा थे। वे आठ बार लोकसभा सांसद और तीन बार राज्यसभा सांसद रहे। 2004 में, वे मनमोहन सिंह सरकार में केंद्रीय कोयला मंत्री भी बने। हालाँकि कोयला घोटाले से जुड़े एक पुराने मामले को लेकर उन्हें मंत्री पद से इस्तीफा देना पड़ा, लेकिन बाद में उन्हें आरोपों से बरी कर दिया गया।
‘दिशोम गुरु’ की पहचान और विरासत
झारखंड में शिबू सोरेन को ‘दिशोम गुरु’ कहा जाता था, जिसका अर्थ है ‘आदिवासियों का मार्गदर्शक’। यह नाम उन्हें आदिवासी समुदाय ने सम्मानपूर्वक दिया था। उन्होंने न केवल राजनीतिक नेतृत्व दिया, बल्कि सामाजिक रूप से भी राष्ट्रीय पटल पर झारखंड की पहचान स्थापित की।
उनकी पहचान ज़मीन से जुड़े नेता के रूप में थी। वे अपने सादा जीवन, सरल वाणी और जनहित के प्रति समर्पण के लिए प्रसिद्ध थे। झारखंड के जंगलों और गाँवों में उन्हें लोकनायक के रूप में देखा जाता था।
विवाद भी रहे
शिबू सोरेन का जीवन विवादों से अछूता नहीं रहा। 1994 में झारखंड के एक शिक्षक शशि नाथ झा की हत्या के मामले में उन्हें अभियुक्त बनाया गया। लंबी अदालती लड़ाई के बाद उन्हें अदालत से राहत मिली। इस मामले ने उनके राजनीतिक जीवन में एक काला अध्याय जोड़ दिया, लेकिन वे इससे उबरने में सफल रहे।
शोक की लहर और नेताओं की श्रद्धांजलि
शिबू सोरेन के निधन की खबर मिलते ही पूरे झारखंड में शोक की लहर दौड़ गई। हजारों लोग उनके अंतिम दर्शन के लिए उमड़ पड़े। विभिन्न राजनीतिक दलों के नेताओं ने उनके निधन पर शोक व्यक्त किया।
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने अपने शोक संदेश में लिखा,
“शिबू सोरेन जी का जीवन संघर्ष और जनसेवा को समर्पित था। उन्होंने आदिवासियों और वंचितों के अधिकारों की रक्षा के लिए काम किया। ईश्वर उनकी आत्मा को शांति प्रदान करे।”
राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू, कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे, गृह मंत्री अमित शाह, राहुल गांधी, लालू यादव और कई अन्य बड़े नेताओं ने उन्हें श्रद्धांजलि दी।
राजकीय सम्मान के साथ अंतिम विदाई
सरकार ने घोषणा की है कि शिबू सोरेन का अंतिम संस्कार पूरे राजकीय सम्मान के साथ किया जाएगा। उनका पार्थिव शरीर झारखंड लाया जाएगा, जहाँ जनता के अंतिम दर्शन के लिए इसे रांची के मोरहाबादी मैदान में रखा जाएगा। इसके बाद, उनके गृह ज़िले दुमका में अंतिम संस्कार किया जाएगा।
उनकी विरासत आगे बढ़ेगी
शिबू सोरेन आज भले ही हमारे बीच नहीं हैं, लेकिन उनके विचार, संघर्ष और सिद्धांत आने वाली पीढ़ियों के लिए प्रेरणा बने रहेंगे। उनके पुत्र हेमंत सोरेन, जो वर्तमान में झारखंड के मुख्यमंत्री हैं, अपने पिता की विचारधारा को आगे बढ़ा रहे हैं।
शिबू सोरेन सिर्फ़ एक राजनेता नहीं थे, वे एक आंदोलन थे। उन्होंने एक पूरे समाज को पहचान दी, आवाज़ दी और उन्हें अपने अधिकारों के लिए लड़ना सिखाया।