झारखंड में फिर छाया “शाकाहारी मटन” रुगड़ा, कीमतें आसमान पर
झारखंड की मानसूनी बारिश के साथ एक बार फिर जंगलों से एक खास स्वाद उभरकर सामने आया है — रुगड़ा। यह जंगली मशरूम राज्य के साल के पेड़ों के नीचे केवल बरसात के दिनों में उगता है और अपनी मटन जैसी महक और स्वाद के कारण “शाकाहारी मटन” कहलाता है। इस बार इसका स्वाद जितना चर्चा में है, उतनी ही तेजी से बढ़ती कीमतें भी लोगों का ध्यान खींच रही हैं।
जंगलों की मिट्टी से निकलने वाला कीमती खजाना
रुगड़ा की बनावट अंडाकार होती है और इसकी सतह खुरदरी नजर आती है। इसके अंदर गाढ़े रंग की संरचना होती है, जो मटन जैसा अनुभव देती है। यही वजह है कि ग्रामीण इलाकों में इसे मांस का स्वाद लेने वाले शाकाहारी विकल्प के तौर पर देखा जाता है।
कीमतों ने तोड़ा रिकॉर्ड
रांची, बोकारो और गुमला जैसे जिलों में इस साल रुगड़ा की कीमतें रिकॉर्ड स्तर तक पहुंच चुकी हैं। रांची के बाजारों में इसका दाम ₹1000 प्रति किलो तक जा पहुंचा है। जंगलों से लाने में लगने वाली मेहनत, सीमित उपलब्धता और जल्दी खराब होने वाली प्रकृति ने इसे बेहद मूल्यवान बना दिया है।
सिर्फ बरसात का मेहमान, जल्दी हो जाता है खराब
रुगड़ा साल भर नहीं मिलता। यह केवल जुलाई और अगस्त के कुछ ही हफ्तों में जंगलों में उगता है। इसकी ताजगी सिर्फ 2-3 दिन तक ही रहती है, जिसके बाद यह खराब हो जाता है। इसी वजह से लोग इसे सुखाकर या फ्रीज़र में रखकर लंबे समय तक इस्तेमाल करने की कोशिश करते हैं।
स्वाद में मटन, गुणों में स्वास्थ्य
झारखंड के घरों में रुगड़ा को खास सब्जी की तरह पकाया जाता है। प्याज, टमाटर और देसी मसालों के साथ इसे मटन की तरह पकाया जाता है और चावल या रोटी के साथ खाया जाता है। सेहत के लिहाज़ से भी यह मशरूम कमाल का है। प्रोटीन से भरपूर रुगड़ा डायबिटीज और दिल की बीमारियों में लाभकारी माना जाता है और इम्यूनिटी बढ़ाने में भी मददगार होता है।
क्या रुगड़ा होगा और महंगा?
इस बार की लगातार बारिश और जंगलों तक पहुंच में आई दिक्कतों ने इसकी उपलब्धता और भी घटा दी है। विशेषज्ञों का मानना है कि जब तक इसकी खेती संभव नहीं हो जाती, तब तक इसकी कीमतें हर साल इसी तरह ऊपर जाती रहेंगी। रांची के खाद्य संस्कृति विशेषज्ञ डॉ. विनय उरांव का कहना है कि अगर सरकार और वैज्ञानिक संस्थान मिलकर इसकी खेती पर काम करें, तो रुगड़ा आम लोगों की रसोई तक भी पहुंच सकता है।