मोबाइल फोन, लैपटॉप और टैबलेट पर बढ़ता समय अब युवाओं की मानसिक सेहत के लिए खतरे की घंटी बनता जा रहा है। हालिया स्वास्थ्य अध्ययनों में सामने आया है कि जरूरत से ज्यादा स्क्रीन टाइम डिप्रेशन, एंग्जायटी और नींद की समस्याओं को तेजी से बढ़ा रहा है। खासतौर पर 15 से 30 वर्ष की उम्र के युवाओं में इसका असर सबसे ज्यादा देखा जा रहा है।
विशेषज्ञों के अनुसार, सोशल मीडिया, ऑनलाइन गेमिंग और लगातार डिजिटल कंटेंट से जुड़ाव युवाओं को मानसिक रूप से थका रहा है। इसका सीधा असर उनके मूड, आत्मविश्वास और सामाजिक व्यवहार पर पड़ रहा है।
स्टडी में क्या सामने आया
स्वास्थ्य शोधकर्ताओं के मुताबिक, जो युवा दिन में
- 6 से 8 घंटे या उससे अधिक स्क्रीन देखते हैं,
उनमें डिप्रेशन के लक्षण 40–50% तक अधिक पाए गए हैं।
लगातार स्क्रीन पर रहने से
- दिमाग को आराम नहीं मिल पाता
- नींद का चक्र बिगड़ता है
- और अकेलेपन की भावना बढ़ती है
यही कारण है कि मानसिक तनाव धीरे-धीरे गंभीर रूप ले लेता है।
सोशल मीडिया बन रहा बड़ा कारण
मनोचिकित्सकों का कहना है कि सोशल मीडिया पर
- दूसरों से खुद की तुलना
- लाइक्स और फॉलोअर्स का दबाव
- ऑनलाइन ट्रोलिंग
जैसे कारण युवाओं में आत्म-संदेह और चिंता को जन्म दे रहे हैं।
एक मानसिक स्वास्थ्य विशेषज्ञ ने बताया,
“युवा अपनी असली जिंदगी से ज्यादा डिजिटल दुनिया में जीने लगे हैं, जिससे भावनात्मक असंतुलन बढ़ रहा है।”
नींद की कमी भी बढ़ा रही समस्या
ज्यादा स्क्रीन टाइम का सीधा असर नींद पर पड़ता है।
- देर रात मोबाइल चलाना
- नीली रोशनी (ब्लू लाइट) का असर
नींद के हार्मोन मेलाटोनिन को प्रभावित करता है।
नींद पूरी न होने से
- चिड़चिड़ापन
- थकान
- और मानसिक अवसाद
तेजी से बढ़ता है।
युवाओं में दिख रहे ये लक्षण
डॉक्टरों के अनुसार, ज्यादा स्क्रीन टाइम वाले युवाओं में
- हर समय बेचैनी
- ध्यान की कमी
- अकेलापन महसूस होना
- गुस्सा और चिड़चिड़ापन
- पढ़ाई या काम में मन न लगना
जैसे लक्षण आम हो गए हैं।
कैसे रखें मानसिक सेहत का ध्यान
विशेषज्ञ युवाओं को सलाह देते हैं कि
- रोजाना स्क्रीन टाइम सीमित करें
- सोने से कम से कम 1 घंटे पहले मोबाइल बंद करें
- सोशल मीडिया से नियमित ब्रेक लें
- फिजिकल एक्टिविटी और योग अपनाएं
- परिवार और दोस्तों के साथ समय बिताएं
जरूरत पड़ने पर मानसिक स्वास्थ्य विशेषज्ञ से सलाह लेने में हिचकिचाएं नहीं।
सरकार और स्कूलों की भूमिका
स्वास्थ्य विशेषज्ञों का मानना है कि
- स्कूलों और कॉलेजों में डिजिटल बैलेंस की शिक्षा
- और मानसिक स्वास्थ्य जागरूकता कार्यक्रम
अब समय की जरूरत बन चुके हैं।
निष्कर्ष
डिजिटल तकनीक हमारी जरूरत है, लेकिन उसका अत्यधिक इस्तेमाल मानसिक स्वास्थ्य के लिए नुकसानदायक साबित हो रहा है। सही संतुलन अपनाकर ही युवा खुद को डिप्रेशन और चिंता जैसी समस्याओं से बचा सकते हैं।