सुन्यायमूर्ति संजीव खन्ना और न्यायमूर्ति संजय कुमार की पीठ ने इन राज्यों को यह चेतावनी भी दी अगर छह हफ्ते के भीतर जवाबी हलफनामा दाखिल नहीं किया तो बीस हजार रुपए का जुर्माना लगाया जाएगा। मामले की अगली सुनवाई अब नवंबर में होगी। पीठ ने यह भी स्पष्ट कर दिया कि अवैध रेत खनन के मूल्य की तुलना में बीस हजार रुपए कुछ भी नहीं है। अदालत का मकसद राज्यों को हलफनामे दाखिल करने के लिए दबाव में लाना है। अदालत उस याचिका पर सुनवाई कर रही है जिसमें अवैध रेत खनन के मामलों की निष्पक्ष जांच कराने और इस धंधे में लगे लोगों के लीज निरस्त करने की मांग की गई है। मंगलवार को सुनवाई के दौरान याचिकाकर्ता एम अलगरस्वामी की तरफ से वकील प्रशांत भूषण ने दलील दी कि याचिका 2018 में दायर की गई थी लेकिन चार राज्यों ने छह साल बाद भी जवाबी हलफनामा दाखिल नहीं किया है। उन्हें अपने राज्य में हो रहे अवैध रेत खनन की स्थिति के बारे में अदालत को अवगत कराना है। प्रशांत भूषण की मदद कर रहे वकील प्रणव सचदेवा ने बताया कि अवैध रेत खनन बड़े पैमाने पर चल रहा है और उससे पर्यावरण को भारी खतरा है। अभी तक केवल पंजाब सरकार ने ही अपना जवाब दाखिल किया है। इस मामले में सुप्रीम कोर्ट ने 24 जनवरी 2019 को नोटिस जारी किया था और पांच राज्यों, केंद्र व सीबीआइ से जवाब मांगा था। याचिका में नदियों और समुद्र तटों पर देश भर में रेत के अवैध खनन का आरोप लगाया गया है। जिससे पर्यावरण को नुकसान पहुंच रहा है लेकिन सरकारी अधिकारी पर्यावरण संबंधी मंजूरी के बिना ही इन गतिविधियों को जारी रखे हैं। नतीजतन कई जगह रेत खनन घोटाले सामने आ चुके हैं।
याचिकाकर्ता एम अलगरस्वामी की तरफ से वकील प्रशांत भूषण ने दलील दी कि याचिका 2018 में दायर की गई थी लेकिन चार राज्यों ने छह साल बाद भी जवाबी हलफनामा दाखिल नहीं किया है। उन्हें अपने राज्य में हो रहे अवैध रेत खनन की स्थिति के बारे में अदालत को अवगत कराना है। प्रशांत भूषण की मदद कर रहे वकील प्रणव सचदेवा ने बताया कि अवैध रेत खनन बड़े पैमाने पर चल रहा है और उससे पर्यावरण को भारी खतरा है।