पूर्व प्रधानमंत्री को मानवता के खिलाफ अपराधों में दोषी ठहराया गया; अपील, प्रत्यर्पण और राजनीति पर गहराया संकट
बांग्लादेश की पूर्व प्रधानमंत्री शेख हसीना को इंटरनेशनल क्राइम्स ट्राइब्यूनल (ICT) ने पिछले साल हुए सरकार-विरोधी प्रदर्शनों के दौरान हुई हिंसा के लिए मौत की सज़ा सुनाई है। यह फैसला सोमवार को 453 पन्नों की एक विस्तृत रिपोर्ट के साथ जारी किया गया, जिसमें कहा गया है कि हसीना के शासन में सुरक्षा बलों को प्रदर्शनकारियों पर गोली चलाने की अनुमति दी गई और हिंसा रोकने के लिए आवश्यक कदम नहीं उठाए गए।
कैसे बदला बांग्लादेश का राजनीतिक माहौल
जुलाई 2024 में सरकारी नौकरियों में कोटा व्यवस्था और भ्रष्टाचार के आरोपों को लेकर पूरे देश में बड़े प्रदर्शन हुए। 46 दिनों तक चले इस आंदोलन में 1,400 से अधिक लोगों की मौत हुई, जिसने बांग्लादेश को गहरे राजनीतिक संकट में धकेल दिया।
इसी अशांति के दौरान हसीना की 15 साल की सत्ता का अंत हो गया और उन्हें भारत में शरण लेनी पड़ी।
वर्तमान प्रधानमंत्री मुहम्मद यूनुस की सरकार ने सत्ता संभालने के बाद पुराने शासनकाल में हुई कथित ज्यादतियों की जांच का वादा किया था। यही प्रक्रिया आगे बढ़ते हुए अब इस सज़ा तक पहुँची है।
किस-किस आरोप में हसीना दोषी पाई गईं
ट्राइब्यूनल ने हसीना के खिलाफ पाँच गंभीर आरोप तय किए थे, जिनमें—
• भीड़ को भड़काने वाले भाषण देना
• सुरक्षा बलों को घातक हथियारों के इस्तेमाल का आदेश
• रंगपुर में छात्र अबू सैयद की गोली मारकर हत्या
• ढाका के चांखारपुल में छह प्रदर्शनकारियों की हत्या
• अशुलिया में छह लोगों को जिंदा जलाना
शामिल हैं।
चांखारपुल में 5 अगस्त 2024 को हुई गोलीबारी के मामले में उन्हें मौत की सज़ा सुनाई गई।
अब आगे की कानूनी प्रक्रिया क्या है?
अपील का अधिकार – लेकिन एक शर्त के साथ
बांग्लादेश के कानून के अनुसार, शेख हसीना के पास इस फैसले के खिलाफ 30 दिन के भीतर सुप्रीम कोर्ट में अपील करने का अधिकार है। लेकिन चूंकि ट्रायल गैर-हाजिरी में चला, इसलिए अपील का अधिकार पाने के लिए उनका सरेंडर करना या गिरफ्त में आना जरूरी माना जा रहा है।
भारत पर दबाव बढ़ा
हसीना फिलहाल भारत में निर्वासन में हैं। फैसले के बाद बांग्लादेश सरकार ने औपचारिक रूप से भारत से उनका प्रत्यर्पण मांग लिया है।
भारत अभी तक इस पर कोई स्पष्ट प्रतिक्रिया नहीं दे रहा है, जिससे यह मामला कूटनीतिक रूप से और ज्यादा संवेदनशील हो गया है।
फांसी कब दी जा सकती है?
अगर हसीना 30 दिन में अपील नहीं करतीं और गिरफ्तार होती हैं, तो अदालत का फैसला लागू किया जा सकता है।
हालांकि फांसी का अंतिम आदेश सरकार की अनुमति पर निर्भर करेगा।
राष्ट्रपति की क्षमा शक्ति
कानूनी विकल्प समाप्त होने के बाद भी हसीना बांग्लादेश के राष्ट्रपति से माफी, सज़ा में कमी या दया याचिका की अपील कर सकती हैं।
राजनीतिक और अंतरराष्ट्रीय असर
इस फैसले ने बांग्लादेश की राजनीति में नई हलचल पैदा कर दी है।
हसीना की पार्टी अवामी लीग इसे राजनीतिक बदले की कार्रवाई बता रही है।
वहीं, मानवाधिकार संगठनों ने ट्रायल की निष्पक्षता पर सवाल उठाते हुए कहा है कि पूरा मामला उनकी अनुपस्थिति में चलाया गया, जिससे न्याय प्रक्रिया पर संदेह पैदा होता है।
आगे क्या देखने को मिलेगा
• क्या भारत हसीना को बांग्लादेश वापस भेजेगा?
• क्या हसीना सरेंडर कर अपील करने का विकल्प चुनेंगी?
• क्या अंतरराष्ट्रीय दबाव इस फैसले की दिशा बदल सकता है