लालू परिवार में फूटा आंतरिक घमासान, RJD की करारी हार के बाद बढ़ी कलह

तेजस्वी यादव के नेतृत्व में आरजेडी को मिली करारी हार के बाद बिहार की राजनीति से ज्यादा सुर्खियां लालू प्रसाद यादव के परिवार की अंदरूनी टूटन से जुड़ी हैं। लंबे समय तक सत्ता और प्रभाव का केंद्र रहा यह परिवार आज गहरे मतभेदों और आरोप-प्रत्यारोपों में उलझा दिखाई देता है। वंशवादी राजनीति का यह अध्याय अब खुले मंच पर बिखरता नज़र आ रहा है।
आरजेडी के 2020 में 75 सीटों से 2025 में मात्र 25 सीटों पर सिमट जाने के बाद पार्टी के भीतर और परिवार में असंतोष चरम पर पहुँच गया है। महागठबंधन भी टूट गया और NDA ने 202 सीटें जीतते हुए सत्ता में मजबूत वापसी की।
इसी राजनीतिक पराजय के बीच लालू यादव के घर से उठता पारिवारिक विवाद अब सार्वजनिक हो चुका है।

रोहिनी बनाम तेजस्वी – परिवार में खुला घमासान
लालू की दूसरी बेटी डॉ. रोहिनी आचार्य का पटना के सर्कुलर रोड स्थित घर छोड़कर बहनों (राजलक्ष्मी, रागिनी, चंदा) के साथ बाहर जाना इस कलह का सबसे बड़ा संकेत बना। रोहिनी ने आरोप लगाया कि तेजस्वी यादव के करीबी संजय यादव और रमीज खान ने उन्हें घर छोड़ने के लिए मजबूर किया। रोहिनी ने यह भी दावा किया कि उनके साथ दुर्व्यवहार हुआ और अपमानजनक शब्द कहे गए।
तेजस्वी यादव की ओर से इन आरोपों पर कोई टिप्पणी नहीं की गई है।
तेजप्रताप और साढ़ू यादव रोहिनी के समर्थन में
तेजस्वी के बड़े भाई तेजप्रताप यादव, जिन्हें इस साल मई में पार्टी और परिवार से छह साल के लिए निकाला गया था, अपनी बहन रोहिनी के समर्थन में खुलकर आ गए हैं।
उनके चाचा साधु यादव ने भी रोहिनी के आरोपों को सही बताते हुए तेजस्वी की टीम पर निशाना साधा है।

लालू परिवार में लगातार बढ़ते विवाद
दो साल पहले तेजप्रताप की पत्नी और पूर्व मंत्री चंद्रिका राय की बेटी ऐश्वर्या राय को घर से निकाल दिया गया था।
लगातार विवाद, आरोप, नाराज़गी और अलगाव अब यह संकेत दे रहे हैं कि लालू परिवार के भीतर भरोसा और एकजुटता लगभग खत्म हो चुकी है।
आरजेडी की सबसे बड़ी हार, परिवार में सबसे बड़ा संकट
2020 में 75 सीटों से 2025 में 25 सीटों पर गिरना आरजेडी के इतिहास की सबसे बड़ी गिरावट है।
इस चुनावी हार ने न केवल राजनीतिक कमजोरी उजागर की, बल्कि लालू परिवार के अंदर छिपे विवादों को भी सामने ला दिया है।
वंशवादी राजनीति की सबसे बड़ी चुनौती
लालू प्रसाद यादव ने राजनीति को परिवार के इर्द-गिर्द रखने की शुरुआत तब की थी जब चारा घोटाले के दौरान उन्होंने राबड़ी देवी को मुख्यमंत्री बनाया। वही परंपरा आगे बढ़ती रही, लेकिन आज वही वंशवाद परिवार पर भारी पड़ता दिख रहा है।
बहन-बेटे के बीच बढ़ता आरोप-प्रत्यारोप, बड़े बेटे तेजप्रताप की बेदखली, बहुओं और बहनों का घर छोड़ना — यह संकेत है कि लालू यादव जिस राजनीतिक विरासत को मजबूत बनाना चाहते थे, वह अब भीतर ही भीतर टूट रही है।
लालू यादव के राजनीतिक जीवन का “पतझड़” अब उनके परिवार में भी महसूस किया जा रहा है। वंशवादी राजनीति की राह आसान लग सकती है, लेकिन अंत में वही सत्ता संघर्ष परिवार को तोड़ने का कारण बन जाती है।
इसी मोड़ पर आज Yadav परिवार खड़ा है—जहाँ सवाल उठ रहा है कि क्या यह विरासत फिर उठ खड़ी होगी, या भीतर के संघर्ष इसे पूरी तरह खत्म कर देंगे।