ऑफिस के बाद आने वाले कॉल, मैसेज और ईमेल से परेशान कर्मचारियों को बड़ी राहत देने वाला प्रस्ताव आखिरकार संसद तक पहुंच गया है। लोकसभा में एनसीपी (शरद पवार गुट) की सांसद सुप्रिया सुले ने “राइट टू डिस्कनेक्ट बिल, 2025” पेश किया, जिसका मकसद कर्मचारियों को काम के बाद पूरी तरह “अनप्लग” होने का अधिकार देना है।
इस बिल में साफ कहा गया है कि कोई भी कंपनी या संस्था अपने कर्मचारियों से ऑफिस ऑवर्स खत्म होने के बाद काम से जुड़े कॉल या ईमेल का जवाब देने की मजबूरी नहीं डाल सकती। अगर कोई कंपनी ऐसा करती है तो उस पर कुल वेतन का 1% जुर्माना लगाने का प्रावधान होगा।
सुप्रिया सुले ने एक्स पर लिखा कि आज की डिजिटल लाइफस्टाइल में लगातार ऑनलाइन और उपलब्ध रहने का दबाव लोगों की निजी जिंदगी और मानसिक स्वास्थ्य पर भारी पड़ रहा है। कई अध्ययनों में पाया गया है कि वीकेंड और छुट्टियों में भी लगातार ईमेल चेक करने की आदत—जिसे ‘टेलीप्रेशर’ कहा जाता है—तनाव, नींद की कमी और थकावट को बढ़ाती है।
एक अध्ययन में तो ‘Information Obesity’ तक का जिक्र है—यानी लगातार मैसेज, मेल और नोटिफिकेशन के बोझ से दिमाग पर भारी दबाव। यही वजह है कि बिल में कहा गया है कि कर्मचारियों के “पर्सनल स्पेस” का सम्मान किया जाना चाहिए और काम के बाद “डिस्कनेक्ट” होना उनका बुनियादी अधिकार माना जाए।
विधेयक में यह भी माना गया है कि कंपनियों की अपनी ज़रूरतें और कामकाजी संस्कृति अलग-अलग होती हैं। इसलिए संस्थाओं को यह लचीलापन भी दिया गया है कि वे अपने कर्मचारियों के साथ शर्तों पर बातचीत कर सकें—लेकिन कर्मचारी का काम के बाद जवाब न देने का अधिकार बरकरार रहेगा।
कुल मिलाकर, यह बिल कर्मचारियों के वेलफेयर, मानसिक स्वास्थ्य और बेहतर वर्क-लाइफ बैलेंस की दिशा में बड़ा कदम माना जा रहा है।