दिल्ली की सांस एक बार फिर थम सी गई है। चारों तरफ धुंध और धुएं से भरी हवा है। इसी बीच राजधानी सरकार ने एक बड़ा कदम उठाया था। कोशिश की गई कि आसमान से कृत्रिम बारिश बरसे और जहरीली हवा कुछ साफ हो जाए। लेकिन यह प्रयोग नाकाम रहा। न बारिश हुई और न ही लोगों को राहत मिली।
क्या था दिल्ली सरकार का प्लान
मंगलवार को दिल्ली सरकार ने आईआईटी कानपुर की टीम के साथ मिलकर क्लाउड सीडिंग का प्रयोग किया। इसके तहत एक छोटे विमान से हवा में सिल्वर आयोडाइड और सोडियम क्लोराइड के कण छोड़े गए ताकि बादलों में नमी बढ़े और बारिश शुरू हो जाए। लेकिन आसमान ने साथ नहीं दिया। आईआईटी कानपुर के निदेशक मनीन्द्र अग्रवाल ने बीबीसी हिन्दी से कहा, “क्लाउड सीडिंग की सफलता का पहला संकेत होता है बारिश, लेकिन कल ऐसा नहीं हुआ क्योंकि बादलों में नमी बहुत कम थी।”
दिल्ली की हवा कितनी खराब है
पिछले दो हफ्तों से दिल्ली का एयर क्वालिटी इंडेक्स यानी ए क्यू आई लगातार 300 से 400 के बीच बना हुआ है। यह सुरक्षित सीमा से लगभग 20 गुना अधिक है। पराली जलाने, गाड़ियों के धुएं, निर्माण कार्य और ठंडी हवा के कारण इस समय हर साल दिल्ली गैस चेंबर में बदल जाती है।
क्लाउड सीडिंग क्या होती है
क्लाउड सीडिंग एक वैज्ञानिक तकनीक है जिसमें बादलों में कृत्रिम कण जैसे सिल्वर आयोडाइड या नमक छोड़े जाते हैं। ये कण बर्फ के नाभिक का काम करते हैं, जिन पर जलवाष्प चिपककर बूंदों में बदल जाती है और फिर बारिश होती है। लेकिन यह तरीका तभी कारगर होता है जब बादलों में पर्याप्त नमी और तापमान हो। अगर नमी कम हो तो यह प्रयोग बेअसर रह जाता है, जैसा इस बार दिल्ली में हुआ।
आंशिक सफलता, प्रदूषण में थोड़ी कमी
आईआईटी कानपुर का कहना है कि भले ही बारिश नहीं हुई लेकिन प्रयोग के बाद हवा में मौजूद पीएम 2.5 कणों में थोड़ी कमी दर्ज की गई। यानी कुछ हद तक हवा की गुणवत्ता में सुधार हुआ। हालांकि विशेषज्ञों का कहना है कि यह सिर्फ अस्थायी राहत है, लंबे समय का समाधान नहीं।
दिल्ली में पहले भी हुए हैं ऐसे प्रयोग
दिल्ली में क्लाउड सीडिंग का यह पहला प्रयास नहीं है। सबसे पहले 1957 में और फिर 1972 में इस तकनीक को आजमाया गया था। हालांकि तब मकसद सूखे से राहत देना था, प्रदूषण नियंत्रित करना नहीं। वर्ष 2023 में भी सरकार ने इसे आजमाने की योजना बनाई थी, लेकिन कोर्ट की मंजूरी न मिलने के कारण प्रयोग नहीं हो सका।
दुनिया में मिले-जुले नतीजे
दुनिया भर में क्लाउड सीडिंग के नतीजे हमेशा एक जैसे नहीं रहे हैं। चीन ने बीजिंग ओलंपिक से पहले मौसम नियंत्रित करने के लिए इस तकनीक का सफलतापूर्वक उपयोग किया था। वहीं संयुक्त अरब अमीरात में इसी तकनीक के बाद भारी बारिश और बाढ़ की स्थिति बन गई थी। पर्यावरण विशेषज्ञ अभिनाश मोहंती का कहना है, “क्लाउड सीडिंग प्राकृतिक प्रक्रियाओं में बदलाव करती है, इसकी सीमाएं हैं और इसके नतीजे हमेशा भरोसेमंद नहीं होते।”
आगे क्या होगा
दिल्ली के पर्यावरण मंत्री मंजींदर सिरसा ने कहा है कि आने वाले हफ्तों में दोबारा यह प्रयोग किया जाएगा, जब वातावरण में नमी बढ़ेगी। हालांकि विशेषज्ञों का मानना है कि क्लाउड सीडिंग दिल्ली की स्थायी समस्या का समाधान नहीं है। प्रदूषण से निजात के लिए जरूरी है कि वाहनों के धुएं पर नियंत्रण किया जाए, पराली जलाने पर सख्त रोक लगे, उद्योगों से निकलने वाले धुएं की निगरानी हो और हरियाली बढ़ाने जैसे ठोस कदम उठाए जाएं।
 
         
        