बिहार विधानसभा चुनाव 2025 की प्रक्रिया जोरों पर है, लेकिन इसके बीच कई उम्मीदवारों के नामांकन पत्र रद्द होने की खबरें लगातार सामने आ रही हैं। अब तक तीन प्रत्याशियों के पर्चे खारिज हो चुके हैं। सवाल यह उठता है कि आखिर किन कारणों से उम्मीदवारों का नामांकन निरस्त किया जाता है और इस प्रक्रिया में कौन-कौन से नियम लागू होते हैं?
क्या है नामांकन प्रक्रिया?
चुनाव आयोग के नियमों के मुताबिक किसी भी प्रत्याशी को चुनाव लड़ने के लिए नामांकन पत्र भरना होता है। यह नामांकन पत्र संबंधित निर्वाचन अधिकारी के समक्ष दायर किया जाता है। इसके साथ उम्मीदवार को आवश्यक दस्तावेज, पहचान पत्र, शपथपत्र और निर्धारित शुल्क भी जमा करना पड़ता है।
नामांकन दाखिल करने के बाद उसकी जांच (Scrutiny) की जाती है। इसी प्रक्रिया में यह तय होता है कि पर्चा वैध है या नहीं। यदि दस्तावेज अधूरे हों, जानकारी गलत हो या जरूरी नियमों का पालन न हुआ हो, तो नामांकन रद्द किया जा सकता है।
किन कारणों से रद्द होता है नामांकन?
बिहार में इस बार कई उम्मीदवारों के पर्चे तकनीकी और कानूनी खामियों के कारण रद्द हुए हैं। नीचे प्रमुख कारण बताए गए हैं —
- गलत या अधूरी जानकारी देना:
अगर उम्मीदवार अपने शपथपत्र (affidavit) में संपत्ति, देनदारियां, आय स्रोत या आपराधिक मामलों से जुड़ी जानकारी छिपा देता है, तो उसका नामांकन स्वतः अमान्य हो जाता है। - निर्धारित शुल्क जमा न करना:
चुनाव आयोग द्वारा तय नामांकन शुल्क जमा करना अनिवार्य है। शुल्क समय पर या सही तरीके से न देने पर पर्चा अस्वीकार किया जा सकता है। - सत्यापन योग्य दस्तावेजों की कमी:
पहचान पत्र, मतदाता सूची में नाम, और प्रस्तावक (proposer) के हस्ताक्षर जैसे दस्तावेज सही न हों तो भी पर्चा रद्द कर दिया जाता है। - निर्धारित तिथि और समय का उल्लंघन:
नामांकन दाखिल करने और जांच की तारीखें तय होती हैं। यदि कोई प्रत्याशी निर्धारित समय के बाद दस्तावेज जमा करता है, तो आयोग उसका नामांकन स्वीकार नहीं करता। - अयोग्यता के कानूनी आधार:
अगर कोई व्यक्ति किसी आपराधिक मामले में दोषी ठहराया गया है, सरकारी नौकरी से बर्खास्त किया गया है या दिवालिया घोषित है, तो वह उम्मीदवार नहीं बन सकता। ऐसी स्थिति में उसका नामांकन स्वतः निरस्त हो जाता है।
अब तक तीन उम्मीदवारों के पर्चे हुए रद्द
बिहार चुनाव 2025 में अब तक तीन प्रत्याशियों के नामांकन खारिज किए जा चुके हैं। इनमें कुछ मामलों में दस्तावेज अधूरे पाए गए, जबकि कुछ में शपथपत्र में दी गई जानकारियां विरोधाभासी थीं। निर्वाचन कार्यालयों ने स्पष्ट किया है कि सभी नामांकन प्रक्रिया चुनाव आयोग के दिशा-निर्देशों के तहत पूरी पारदर्शिता के साथ जांची जा रही है।
जांच के दौरान क्या होता है?
नामांकन की जांच (Scrutiny) के दिन निर्वाचन अधिकारी सभी उम्मीदवारों के दस्तावेजों की बारीकी से जांच करते हैं। इस दौरान प्रत्याशी या उनके प्रतिनिधि मौजूद रह सकते हैं। यदि किसी दस्तावेज पर आपत्ति की जाती है, तो अधिकारी मौके पर ही उसका निस्तारण करते हैं। गलत जानकारी या अपूर्ण दस्तावेज पाए जाने पर नामांकन अस्वीकार कर दिया जाता है।
विशेषज्ञ क्या कहते हैं?
चुनाव विश्लेषक मानते हैं कि नामांकन रद्द होने का सबसे बड़ा कारण उम्मीदवारों की लापरवाही और जल्दबाजी होती है। कई बार प्रत्याशी अंतिम समय में फॉर्म भरते हैं और जरूरी शपथपत्र या हस्ताक्षर छूट जाते हैं, जिससे पूरा प्रयास बेकार हो जाता है।
राजनीतिक जानकारों का कहना है कि यह स्थिति लोकतांत्रिक प्रक्रिया के लिए सीख है — उम्मीदवारों को पारदर्शिता और जिम्मेदारी के साथ पर्चा दाखिल करना चाहिए।
चुनाव आयोग की अपील
निर्वाचन आयोग ने उम्मीदवारों से अपील की है कि वे नामांकन से पहले अपने दस्तावेजों की पूरी जांच कर लें और शपथपत्र में दी जाने वाली सभी जानकारियों को सत्य और अद्यतन रखें। आयोग ने यह भी कहा है कि यदि किसी उम्मीदवार का नामांकन खारिज होता है, तो उसे कारण सहित लिखित सूचना दी जाएगी।
बिहार चुनाव 2025 में नामांकन प्रक्रिया पारदर्शी और सख्त निगरानी में हो रही है। पर्चा रद्द होना कई बार तकनीकी त्रुटियों या लापरवाही का परिणाम होता है। इसलिए उम्मीदवारों के लिए यह आवश्यक है कि वे दस्तावेजों और कानूनी औपचारिकताओं को गंभीरता से लें।
“लोकतंत्र की पहली शर्त पारदर्शिता है — और नामांकन प्रक्रिया इसका सबसे मजबूत आधार।”