बिहार में चुनावी प्रक्रिया को लेकर एक चौंकाने वाली जानकारी सामने आई है। चुनाव आयोग की हालिया समीक्षा रिपोर्ट (SIR – Systematic Investigation Report) के मुताबिक, राज्य की वोटर लिस्ट में नेपाल, बांग्लादेश और म्यांमार से आए घुसपैठियों के नाम दर्ज पाए गए हैं। ये खुलासा न सिर्फ लोकतंत्र की नींव को हिलाता है, बल्कि आने वाले चुनावों की पारदर्शिता पर भी गंभीर सवाल खड़े करता है।
80% मतदाताओं की जांच के बाद खुली पोल
चुनाव आयोग की इस समीक्षा रिपोर्ट में बताया गया है कि अब तक राज्य में 80 प्रतिशत से ज्यादा मतदाताओं का वेरिफिकेशन पूरा हो चुका है। इस प्रक्रिया के दौरान पता चला कि बड़ी संख्या में विदेशी नागरिकों ने फर्जी दस्तावेज़ों के आधार पर भारतीय वोटर ID बनवा लिए हैं। इनमें से अधिकतर लोग पड़ोसी देशों — नेपाल, बांग्लादेश और म्यांमार — से हैं।
किन जिलों में मिले ज्यादा फर्जी मतदाता?
रिपोर्ट के मुताबिक, बिहार के सीमावर्ती ज़िलों जैसे कि सीतामढ़ी, अररिया, मधुबनी, सुपौल, किशनगंज आदि में फर्जी वोटरों की संख्या अधिक देखी गई है। इन जिलों की सीमाएं नेपाल और बांग्लादेश से लगती हैं, जिससे अवैध घुसपैठ आसान हो जाती है।
क्या वोट बैंक की राजनीति में हो रही मदद?
इस खुलासे के बाद राजनीतिक माहौल गरमा गया है। विपक्षी दलों ने आरोप लगाया है कि कुछ राजनीतिक ताकतें जानबूझकर वोट बैंक की राजनीति के तहत इन घुसपैठियों को वोटर लिस्ट में शामिल करा रही हैं। हालांकि सत्ताधारी दल ने स्पष्ट किया है कि सरकार चुनाव आयोग को हरसंभव सहयोग दे रही है और जो भी दोषी पाया जाएगा, उसके खिलाफ कड़ी कार्रवाई की जाएगी।
चुनाव आयोग ने क्या कदम उठाए?
चुनाव आयोग ने घुसपैठ और फर्जी वोटिंग की आशंका को गंभीरता से लेते हुए कहा है कि:
- संदिग्ध वोटरों के दस्तावेज़ों की दोबारा जांच की जा रही है।
- जिन मतदाताओं की नागरिकता को लेकर संदेह है, उनके नाम हटाने की प्रक्रिया जल्द शुरू होगी।
- आने वाले समय में डिजिटल वेरिफिकेशन प्रणाली को और मज़बूत किया जाएगा।
क्या लोकतंत्र सुरक्षित है?
इस खुलासे ने एक बार फिर यह सोचने पर मजबूर कर दिया है कि क्या हमारा मतदान तंत्र सुरक्षित और निष्पक्ष है?
जब सीमापार से आए लोग हमारी वोटर लिस्ट में शामिल होकर चुनावों को प्रभावित कर सकते हैं, तो इसका असर सीधे-सीधे राज्य की राजनीति और नीतियों पर पड़ता है।