तेहरान में 1.5 करोड़ लोग पानी की कमी से जूझ रहे, डैम 10% क्षमता पर
ईरान इस समय इतिहास के सबसे गंभीर जल संकट से गुजर रहा है। देश के राष्ट्रपति ने चेतावनी दी है कि अगर जल्द बारिश नहीं हुई तो राजधानी तेहरान को खाली करना पड़ सकता है। राजधानी में लगभग 1.5 करोड़ लोग रहते हैं और शहर के प्रमुख जलाशय खतरनाक रूप से खाली हो चुके हैं।
राजधानी की स्थिति चिंताजनक
तेहरान में प्रमुख डैम की क्षमता मात्र 10% से भी कम रह गई है। एक डैम 9% और दूसरा डैम सिर्फ 8% क्षमता पर है। कई इलाकों में नल अक्सर सूखे रहते हैं और पानी की आपूर्ति अनियमित हो गई है। हालांकि सरकार ने आधिकारिक रूप से राशनिंग लागू नहीं की है, लेकिन लोग लगातार कम दबाव और पानी की कमी की शिकायत कर रहे हैं।
देशभर में पानी की किल्लत
राजधानी ही नहीं, बल्कि ईरान के 20 से अधिक प्रांत महीनों से पानी की कमी झेल रहे हैं। खेत सूख गए हैं, तालाब और झीलें गायब हो गई हैं। नागरिक घंटों इंतजार करते हैं कि कहीं से पानी आए। विशेषज्ञों का कहना है कि यह संकट केवल कुछ सालों का नहीं है, बल्कि पीढ़ियों तक असर डालने वाला है।
सालों से बढ़ता सूखा
देश पिछले छह वर्षों से लगातार सूखे की मार झेल रहा है। कम बारिश और बढ़ता तापमान हालात को और बिगाड़ रहा है। जलवायु परिवर्तन ने जैसे आग में घी डाल दिया है।
जल संकट के पीछे की वजहें
विशेषज्ञों के अनुसार इस संकट के पीछे दशकों की गलत नीतियाँ जिम्मेदार हैं, जैसे:
- नदियों पर अत्यधिक बांध बनाना
- भूजल का अंधाधुंध दोहन
- पुराने और रिसते हुए पाइपलाइन नेटवर्क
- पानी-खपत वाले उद्योगों का विस्तार
- कृषि नीतियाँ, खासकर पानी-भक्षी फसलों की खेती
ईरान में लगभग 90% पानी कृषि में उपयोग होता है। चावल जैसी फसलें भूजल तेजी से घटा रही हैं।
झीलें और नदियाँ सूख गईं
कभी दुनिया की सबसे बड़ी खारे पानी की झीलों में शामिल एक प्रमुख झील अब लगभग सूख चुकी है। विशेषज्ञ इसे वॉटर बैंकक्रप्सी कहते हैं। सरकार ने बादलों में कृत्रिम बारिश कराने की कोशिशें की हैं, लेकिन वैज्ञानिक इसके असर पर संदेह जता रहे हैं।
लोगों की प्रतिक्रिया
जल संकट की गंभीरता के कारण नागरिक मस्जिदों और धार्मिक स्थलों में जाकर बारिश की दुआ कर रहे हैं। राष्ट्रपति की चेतावनी के बाद राजधानी के लोग और चिंतित हैं।
निष्कर्ष
ईरान में जल संकट सिर्फ राजधानी ही नहीं, बल्कि पूरे देश के लिए गंभीर खतरा बन गया है। लंबे सूखे, जलवायु परिवर्तन और दशकों पुरानी नीतियों ने मिलकर ऐसी स्थिति पैदा कर दी है कि केवल तकनीकी उपाय ही नहीं, बल्कि सामाजिक और राजनीतिक कदम भी जरूरी हैं।