सरकार का कहना: साइबर अपराध रोकना है मकसद
भारतीय सरकार ने सभी मोबाइल फोन निर्माताओं और आयातकों को निर्देश दिया है कि वे संचार साथी (Sanchar Saathi) ऐप हर डिवाइस में प्री-इंस्टॉल करें, जो भारत में इस्तेमाल के लिए आता है। सरकार का कहना है कि यह कदम टेलीकॉम साइबर सुरक्षा को खतरे में डालने वाले कृत्यों की पहचान और रिपोर्टिंग के लिए जरूरी है। इसका उद्देश्य चोरी, फोन तस्करी और कॉल सेंटर धोखाधड़ी जैसी घटनाओं को रोकना है, जो भारत और विदेशों में भी प्रभाव डालती हैं।
एक अरब फोन, बढ़ती साइबर अपराध की समस्या
भारत में एक अरब से अधिक सक्रिय मोबाइल फोन हैं और साइबर अपराध लगातार बढ़ रहा है। सरकार ने बताया कि पिछले वर्ष में 2.3 मिलियन साइबर सुरक्षा घटनाएँ दर्ज की गईं, जो दो साल पहले की तुलना में दोगुनी हैं। ग्रामीण इलाकों में बड़े नेटवर्क से होने वाली धोखाधड़ी सबसे बड़ा हिस्सा है। 2024 में सरकारी पोर्टल के अनुसार, डिजिटल धोखाधड़ी में $2.6 बिलियन का नुकसान दर्ज हुआ।
गोपनीयता पर सवाल और निगरानी की आशंका
कांग्रेस नेता प्रियंका गांधी समेत आलोचकों का कहना है कि यह ऐप जनता की निगरानी का उपकरण बन सकता है। संचार साथी ऐप फोन की लोकेशन ट्रैक कर सकता है और चूंकि इसे ऑपरेटिंग सिस्टम स्तर पर इंस्टॉल किया जाता है, इसलिए यह संदेश, ऑडियो, फोटो और अन्य व्यक्तिगत डेटा तक भी पहुँच सकता है।
डिजिटल नीति विशेषज्ञ निखिल पाहवा ने बताया कि Apple, Samsung और Xiaomi जैसे फोन निर्माता सुनिश्चित करेंगे कि ऐप की सभी कार्यक्षमताएँ निष्क्रिय न की जा सकें, जिससे उपयोगकर्ता की पसंद पर सवाल उठता है। इसके अलावा, सरकार ने डिजिटल पर्सनल डेटा प्रोटेक्शन एक्ट 2023 से खुद को मुक्त कर रखा है, जिससे नागरिकों की जानकारी इकट्ठा करने पर कोई कानूनी रोक स्पष्ट नहीं है।
इंटरनेट वकील अपार गुप्ता ने चेताया, “जब सरकार हर नए फोन में विशेष अधिकार वाला ऐप जबरदस्ती डालती है, तो यह अपने घर में ताला लगाने जैसा है… सुरक्षा और गोपनीयता के लिए सीमाएँ और नियंत्रण होना जरूरी है।”
सरकार की प्रतिक्रिया: वैकल्पिक, अनिवार्य नहीं?
बढ़ते विरोध के बीच, संचार मंत्रालय ने स्पष्ट किया कि ऐप “पूरी तरह से वैकल्पिक” है। मंत्री ज्योतिरादित्य सिंधिया ने कहा, “अगर आप रजिस्टर नहीं करना चाहते तो न करें, और इसे कभी भी हटा सकते हैं,” ताकि जनता को आश्वासन दिया जा सके कि इंस्टॉलेशन अनिवार्य नहीं है।
वैश्विक परिप्रेक्ष्य
भारत अकेला नहीं है। रूस ने हाल ही में अपने नागरिकों के फोन में सरकारी मैसेजिंग ऐप प्री-इंस्टॉल करना शुरू किया, और वहां भी धोखाधड़ी रोकने का कारण बताया गया।
अगले कदम
अब बहस इस बात पर केंद्रित है कि साइबर सुरक्षा और डिजिटल गोपनीयता के बीच संतुलन कैसे बनाया जाए। ऐप की तकनीकी क्षमताएँ व्यापक हैं, जिससे निगरानी और जवाबदेही पर सवाल उठते हैं। नागरिक, गोपनीयता कार्यकर्ता और राजनीतिक विरोधी देख रहे हैं कि संचार साथी एक सुरक्षा उपकरण बनेगा या निगरानी का साधन।