नई दिल्ली।
दिसंबर में जब देशभर में IndiGo की उड़ानें अचानक रद्द होने लगीं और लाखों यात्री हवाई अड्डों पर फंसे रहे, तब एक सवाल चुपचाप हवा में तैरता रहा—Air India कहां थी? यह वही एयरलाइन है, जिसे कभी ‘महाराजा’ कहा जाता था और जो लंबे समय तक भारतीय आसमान की पहचान रही।
विडंबना यह रही कि संकट के इस दौर में किसी को यह ख्याल तक नहीं आया कि Air India यात्रियों की मदद के लिए आगे आ सकती है। यह सिर्फ IndiGo की नाकामी की कहानी नहीं है, बल्कि Air India के भरोसे के टूट जाने की भी दास्तान है।
हाल ही में Air India की लापरवाही तब सुर्खियों में आई, जब कोलकाता एयरपोर्ट पर साल 2012 से खड़ा एक बोइंग 737 विमान अचानक “याद” आया। 43 साल पुराना यह विमान बेंगलुरु ट्रैक्टर-ट्रॉली पर ले जाया गया। यह घटना प्रतीक बन गई—Air India की उस भूलने की आदत का, जिसने कभी देश की सबसे प्रतिष्ठित एयरलाइन को हाशिये पर पहुंचा दिया।
एक दौर था जब अधिकतर भारतीयों की पहली उड़ान Air India से ही होती थी। यह एयरलाइन किसी परिवार के सदस्य की तरह थी—हमेशा मौजूद, लेकिन धीरे-धीरे अनदेखी होती चली गई। मगर एविएशन की दुनिया में भावनाओं की कोई जगह नहीं होती। जब जरूरत के वक्त कोई एयरलाइन सीट नहीं दे पाए, तो उसका इतिहास भी बेकार हो जाता है।
सरकारी नियंत्रण, फिर निजीकरण और दोबारा निजी हाथों में लौटने की लंबी यात्रा के बाद भी Air India अभी खुद को संभाल ही रही है। इस बीच उसने Vistara जैसी भरोसेमंद और तेजी से लोकप्रिय होती एयरलाइन को अपने में समेट लिया। Vistara ने कम समय में यात्रियों का विश्वास जीता था, लेकिन उसका विलय एक ऐसी एयरलाइन में हुआ, जो अब भी अपनी पहचान दोबारा गढ़ने में जुटी है।
IndiGo ने जहां सख्त ऑपरेशनल अनुशासन, समयपालन और एक जैसे विमानों की रणनीति से बाजार पर कब्जा जमाया, वहीं Air India पुराने अनुभवों, देरी और खराब सेवाओं की यादों से बाहर नहीं निकल पाई। आज IndiGo की घरेलू बाजार हिस्सेदारी करीब 65% है, जबकि Air India काफी पीछे है।
IndiGo संकट के दौरान यही सबसे बड़ा संकेत मिला—यात्री परेशान थे, लेकिन उन्हें Air India याद ही नहीं आई। भरोसा इतनी जल्दी वापस नहीं आता। सालों की खराब छवि कुछ दिनों की विज्ञापन मुहिम से नहीं बदलती।
हालांकि अब हालात Air India के लिए एक नया मौका लेकर आए हैं। सरकार द्वारा IndiGo की क्षमता में कटौती के बाद Air India दिसंबर में अतिरिक्त उड़ानें चलाने की तैयारी में है। नए केबिन, बेहतर सुविधाएं और बदली हुई ब्रांडिंग के साथ वह यात्रियों के दिलों में फिर जगह बनाने की कोशिश कर रही है।
Air India की असली त्रासदी यही है—उसे न सिर्फ खुद को याद दिलाना होगा, बल्कि यात्रियों की स्मृति में भी दोबारा जगह बनानी होगी। अगर Vistara भरोसा जीत सकती है, तो महाराजा भी जीत सकता है। सवाल सिर्फ इतना है कि क्या Air India इस मौके को पहचान पाएगी और सच में ‘देश की एयरलाइन’ बनकर लौट पाएगी?