ठाणे जिले का बोरीवली पडघा गांव एक बार फिर सुरक्षा एजेंसियों की कार्रवाई को लेकर चर्चा में है। हाल ही में ISIS से जुड़ी गतिविधियों के मामले में प्रवर्तन निदेशालय ने देशभर में कई ठिकानों पर छापेमारी की, जिसमें इस गांव का नाम फिर सामने आया। बीते दो दशकों से यह गांव लगातार सुरक्षा एजेंसियों के रडार पर बना हुआ है और यहां रहने वाले लोग हमेशा किसी भी वक्त तलाशी या छापे की आशंका में जीते हैं।
स्थानीय लोगों का कहना है कि गांव में पुलिस की मौजूदगी इतनी ज्यादा रहती है कि उन्हें हर समय डर बना रहता है। दो दशक पहले गांव पर आतंकवादी गतिविधियों का जो ठप्पा लगा था, वह आज तक नहीं मिट पाया है। NIA, ED, महाराष्ट्र ATS और ठाणे ग्रामीण पुलिस की छापेमारी यहां आम बात हो चुकी है। 11 दिसंबर को ED ने ISIS से जुड़े मामले में 40 स्थानों पर रेड की थी, जिनमें बोरीवली पडघा भी शामिल था।
हालांकि दुनिया बदल चुकी है। SIMI जैसे संगठनों से लेकर ISIS जैसे वैश्विक आतंकी नेटवर्क तक समय के साथ हालात बदले हैं, लेकिन सुरक्षा एजेंसियों की नजर में इस गांव की छवि अब भी संदेह के घेरे में बनी हुई है। सवाल उठता है कि आखिर यह गांव हमेशा एजेंसियों के निशाने पर क्यों रहता है।
इसका जवाब गांव के इतिहास में छिपा है। रिपोर्टों के मुताबिक, सातवीं से दसवीं सदी के दौरान कोंकण क्षेत्र में शिलाहार वंश का शासन था। बारहवीं सदी में भिवंडी बंदरगाह के जरिए अरबी व्यापारियों का यहां आना शुरू हुआ। इनमें से कई लोग यहीं बस गए और बोरीवली क्षेत्र में एक बस्ती विकसित हुई, जिसे आज बोरीवली पडघा कहा जाता है। 2011 की जनगणना के अनुसार, गांव की लगभग 83 प्रतिशत आबादी मुस्लिम है।
इस गांव का स्वतंत्रता आंदोलन में भी अहम योगदान रहा है। आजादी की लड़ाई के दौरान यहां के लोगों ने सक्रिय भूमिका निभाई थी। मुस्लिम महिलाओं ने स्वदेशी आंदोलन के तहत विदेशी कपड़ों की होली जलाई थी। बोरीवली चौराहे पर हुई एक सभा में कांग्रेस नेता सरोजिनी नायडू भी शामिल हुई थीं। बावजूद इसके, आज गांव की पहचान उस गौरवशाली इतिहास से नहीं, बल्कि सुरक्षा छापेमारियों से जुड़ चुकी है।
बीसवीं सदी के आखिरी वर्षों में यहां वामपंथी गतिविधियों और इस्लामिक छात्र आंदोलनों का प्रभाव बढ़ा। इसी दौरान स्टूडेंट्स इस्लामिक मूवमेंट ऑफ इंडिया यानी SIMI का प्रभाव यहां देखने को मिला। यह संगठन 2001 में आतंकी गतिविधियों में संलिप्तता के आरोप में प्रतिबंधित कर दिया गया था और आज भी प्रतिबंधित है।
सुरक्षा एजेंसियों की नजर इस गांव पर सबसे पहले 2002 और 2003 के मुंबई सीरियल ब्लास्ट के दौरान पड़ी, जब यहां के पांच लोगों के नाम आरोपियों की सूची में सामने आए। इनमें सबसे चर्चित नाम साकिब नाचन का था, जो SIMI का पूर्व राष्ट्रीय महासचिव रह चुका था। एजेंसियों ने उस पर हथियार जुटाने, आतंकियों को प्रशिक्षण देने और हमलों की साजिश रचने के आरोप लगाए।
साकिब नाचन एक प्रभावशाली परिवार से ताल्लुक रखता था। 1980 के दशक में वह SIMI का उभरता हुआ चेहरा बन गया। खुफिया एजेंसियों के अनुसार, वह पाकिस्तान और अफगानिस्तान जाकर उग्रवादी संगठनों के संपर्क में आया। 1992 में TADA के तहत उसकी गिरफ्तारी हुई और बाद में उसे सजा सुनाई गई। रिहाई के बाद वह दोबारा आतंक से जुड़े मामलों में गिरफ्तार हुआ। 2023 में NIA ने उसे ISIS से संबंधों के आरोप में फिर पकड़ा। 2025 की शुरुआत में बीमारी के चलते उसकी मौत हो गई।
पिछले दो वर्षों में छापेमारी बढ़ने की एक वजह यह भी बताई जाती है कि एजेंसियों का मानना है कि SIMI के समय बने आतंकी नेटवर्क पूरी तरह खत्म नहीं हुए हैं। NIA के अनुसार, साकिब नाचन और उसके सहयोगी ISIS के स्लीपर सेल से जुड़े थे और IED बनाने से लेकर हमलों की योजना तक में शामिल थे। एजेंसी का दावा है कि बोरीवली पडघा को लिबरेटेड जोन बनाने की साजिश भी रची जा रही थी।
इन्हीं कारणों से यह गांव आज भी हाई सर्विलांस जोन बना हुआ है। यहां लगातार पुलिस की तैनाती रहती है और समय समय पर छापेमारी होती रहती है। इसका असर गांव के आम लोगों की जिंदगी पर साफ नजर आता है, जो वर्षों से संदेह की छाया में जीवन जीने को मजबूर हैं।