इंजन में टॉयलेट न होने के पीछे तकनीकी और सुरक्षा कारण
भारतीय रेलवे दुनिया के सबसे बड़े रेल नेटवर्कों में शामिल है और यात्री सुविधाओं के लिए लगातार आधुनिक तकनीक अपना रही है। लेकिन एक प्रश्न हमेशा चर्चा में रहता है—ट्रेन के इंजन में टॉयलेट क्यों नहीं होता? विशेषज्ञों के अनुसार इंजन में जगह की बेहद कमी होती है और पूरा स्पेस तकनीकी उपकरणों, कंट्रोल पैनलों और सुरक्षा सिस्टम से भरा रहता है। किसी भी तरह का टॉयलेट केबिन न केवल इंजन की संरचना को प्रभावित कर सकता है बल्कि पानी या सीवेज से होने वाली तकनीकी खराबियों का जोखिम भी बढ़ा सकता है। इसी कारण इंजनों में शौचालय की व्यवस्था नहीं दी जाती।
ड्राइवर कैसे करते हैं शौचालय की जरूरत को मैनेज
लोको पायलटों को लंबे घंटों तक ट्रेन चलानी होती है, लेकिन इंजन में टॉयलेट न होने के बावजूद वे कुछ निर्धारित तरीकों से अपनी जरूरत पूरी करते हैं। आमतौर पर वे अगले स्टेशन पर रुककर वहां मौजूद विशेष टॉयलेट का उपयोग करते हैं। कुछ मामलों में उन्हें ट्रेन को सिग्नल पर रोकने की अनुमति मिलती है, ताकि वे शौचालय जा सकें। रेलवे अब नए लोकोमोटिव्स में छोटे पोर्टेबल या वॉटर-लेस टॉयलेट लगाने की पहल भी कर रही है। हालांकि SLR कोच में टॉयलेट उपलब्ध होता है, लेकिन चलती ट्रेन में वहां तक पहुंचना पायलट के लिए लगभग असंभव होता है।
रेलवे कर रहा है नई तकनीक पर काम
लोको पायलटों की सुविधा को देखते हुए भारतीय रेलवे अब इंजनों में कॉम्पैक्ट टॉयलेट सिस्टम लगाने पर विचार कर रहा है। नई तकनीक के तहत ऐसे पोर्टेबल टॉयलेट विकसित किए जा रहे हैं जो सीमित जगह में फिट हो सकें और इंजन के संवेदनशील इलेक्ट्रॉनिक सिस्टम को प्रभावित न करें। यह पहल लंबी दूरी के ड्राइवरों की मुश्किलें कम कर सकती है।